न्याय और न्यायाभास। न्यायाभास से बेहतर और सटीक होगा- इन्साफ़ का धोखा। यानी आपको जान पड़े कि इंसाफ मिल रहा है और वह कभी हाथ न आए। जो सिद्दीक़ कप्पन के साथ किया गया, उसे इन्साफ़ का मज़ाक ही कहेंगे। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद सिद्दीक कप्पन को मथुरा से दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ में इलाज के लिए लाया गया और गुपचुप तरीके से बिना उनके परिवार और वकील को खबर किए वापस मथुरा जेल पहुँचा भी दिया गया।
सिद्दीक़ कप्पन के लिए न्याय एक संयोग है, नियम नहीं
- वक़्त-बेवक़्त
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- 11 May, 2021

अपने मुक़दमे का इन्तजार कर रहे कैदी से ज़िंदगी का हक़ छिन नहीं जाता। यह राज्य का जिम्मा है कि वह उसे हर मुमकिन सहूलियत मुहैया करवाए जिससे वह सेहतमंद रह सके। लेकिन मेहता साहब ने जिस तरह कप्पन के खिलाफ़ बहस की, उससे एक तो यह लगता था कि साबित हो चुका है कि वे अपराधी हैं और दूसरे कि उन्हें बहैसियत इंसान इज्ज़त से जीने का कोई हक नहीं।
कप्पन को अस्पताल से वापस जेल भेजने में जो तत्परता बरती गई वह इससे जाहिर है कि वे 6-7 मई की रात 2.30 बजे मथुरा पहुँचा दिए गए। रातोंरात दिल्ली से मथुरा भगा ले जाना, वह भी तब जब उनकी पत्नी केरल से खासकर उन्हें देखने ही दिल्ली आई थीं, लेकिन उन्हें मिलने देना तो दूर, यह बताया भी नहीं गया कि उनके पति को वापस जेल भेजा जा रहा है।
कप्पन के मामले में जल्दबाजी क्यों?
कप्पन की पत्नी रेहाना ने यह खबर मिलने के बाद कि कप्पन को मथुरा के एक हस्पताल में रखा गया है, वहाँ उन्हें हथकड़ी से खाट से बाँध दिया गया है और वे फारिग होने के लिए बाथरूम तक भी नहीं जा सकते और खाने पाने का कोई ठिकाना नहीं, सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इस अर्जी के साथ कि या तो उन्हें वापस जेल भेज दिया जाए या उत्तर प्रदेश से बाहर किसी अच्छे अस्पताल में इलाज के लिए दाखिल कराया जाए।