“देखो, पृथ्वी, हम सबसे ज़्यादा फिजूलखर्च निकले।” इज़रायली और यहूदी कथाकार डेविड ग्रॉसमैन ने 2006 में यित्ज़ाक राबिन स्मृति व्याख्यान में कवि शाउन चेर्नेकोव्स्की की 1938 की इस पंक्ति को उद्धृत किया। कवि का विषाद यह था कि इज़रायल की भूमि के भीतर हमने हर कुछ वक्त पर अपने जवानों को दफ़न किया है। नौजवानों की मौत भयानक, विक्षोभकारी बर्बादी है।
फ़लस्तीन मरना भूल गया है
- वक़्त-बेवक़्त
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- 17 May, 2021

फ़लस्तीन की चौहद्दी क्या है? क्या उसका प्रधानमंत्री भी अपनी मर्जी से कहीं आ-जा सकता है, बाकी लोगों की बात ही छोड़ दीजिए? फ़लस्तीन की ज़मीन कहाँ है? किसके कब्जे में है? ये सरल प्रश्न हैं। लेकिन कोई पूछता नहीं। कहा जाता है, यह मामला ज़रा पेचीदा है।
ग्रॉसमैन आगे कहते हैं जितना भयानक यह है, “उससे कम भयानक यह अहसास नहीं कि इज़रायली राज्य ने कई वर्षों से न सिर्फ अपने नौजवान बेटे-बेटियों की जिंदगियाँ मुजरिमाना तरीके से बर्बाद की हैं बल्कि उसे इस भूमि पर घटित एक चमत्कार को भी व्यर्थ कर दिया है, एक दुर्लभ अवसर जो इतिहास ने उसे प्रदान किया था, एक प्रबुद्ध, सुचारू जनतांत्रिक राज्य जो यहूदी और सार्वभौम मूल्यों के अनुसार गढ़ा जाएगा। एक देश जो राष्ट्रीय घर होगा और पनाहगाह। यह ऐसी जगह भी होगी जो यहूदी वजूद को नए मायने देगी। एक ऐसा देश जिसमें उसकी यहूदी पहचान का महत्वपूर्ण, अनिवार्य हिस्सा होगा गैर यहूदियों को पूरी बराबरी और इज्ज़त।”