हम अपने उन दोस्तों का क्या करें जो मुसलमानों से नफ़रत करते हैं? यह सवाल सिर्फ़ दोस्तों के बारे में नहीं, अपने रिश्तेदारों के संदर्भ में भी किया जा सकता है।यहाँ दो पक्ष स्पष्ट हैं: एक जिन्हें मैं ‘हम’ कह रहा हूँ और दूसरा अपने मित्रों, परिजनों का जिनके मन में मुसलमानों के प्रति घृणा है। ज़ाहिर यह यह हम हिंदुओं का है या ईसाइयों का भी हो सकता है।दूसरा पक्ष भी उन्हीं का है, यानी ईसाइयों और हिंदुओं का। यानी चलताऊ ज़ुबान में अपने लोगों का।