loader
संभल में पुलिसकर्मी फायरिंग करते हुए

संभल हिंसाः क्या इसका यूपी उपचुनाव 2024 से कोई संबंध है?

उत्तर प्रदेश के संभल में 3 मुसलमानों की मौत का हाल के विधान सभा चुनाव नतीजों के साथ क्या रिश्ता हो सकता है? उत्तर प्रदेश के विधान सभा उपचुनावों में 9 में से 7 सीटों पर  भारतीय जनता पार्टी ने जो जीत हासिल की उसका कोई संबंध इन मौतों से जोड़ना हास्यास्पद  लगेगा। लेकिन अगर आप चुनावों में पुलिस और प्रशासन की भूमिका को  देखें और संभल की मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश और उस सर्वेक्षण के दौरान हुई झड़प में पुलिस के रवैये पर ध्यान दें तो इस रिश्ते को समझ पाएँगे।
संभल के क़रीब मुसलमान बहुल कुंदरकी में भाजपा भारी बहुमत से जीती है। इसके कारण मीडिया के द्वारा खोजे जा रहे हैं।लेकिन हमने इसके वीडियो देखे कि पुलिस मुसलमान मतदाताओं को बूथ तक जाने से रोक रही है। उनकी वोटर पर्ची छीन रही है और  गोली चलाने की धमकी दे रही है। दूसरे इलाक़ों से भी ऐसी शिकायतें मिली हैं। जैसी अपेक्षा थी चुनाव आयोग ने इन शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया। वह माने न माने, सब जानते हैं कि पुलिस और प्रशासन को भाजपा के हक़ में काम करने में हिचक नहीं है।मज़े की बात यह है कि शायद उन्हें ऐसा कहने पर वे बुरा मान जाएँ। लेकिन विचारधारात्मक तौर पर पुलिस और प्रशासन के अधिकतर लोग भाजपा के साथ खड़े होंगे, इसके लिए बहुत अध्ययन और सर्वेक्षण की ज़रूरत नहीं होगी। इसलिए मुसलमानों के प्रति शंका और उन्हें लेकर दुराव अब पुलिस और प्रशासन के स्वभाव का अंग बन गया है। जो चीज़ हम पुलिस और प्रशासन में आम तौर पर देखते आ रहे हैं, वह अब न्यायपालिका पर भी लागू हो रही है। 
ताजा ख़बरें
संभल की शाही मस्जिद के पहले वहाँ क्या था, इसे जानने की अर्ज़ी लगाए जाने के 3 घंटे के भीतर सिविल जज ने मस्जिद एक सर्वेक्षण के आदेश दे दिए।अदालत ने मस्जिद कमिटी को कोई नोटिस नहीं जारी की। उसका पक्ष जानने का प्रयास नहीं किया और मस्जिद के सर्वेक्षण का हुक्म दे डाला। यह कुछ ऐसा ही है कि कोई आपके घर के बारे में दावा करे कि वह पहले उसके दादा का था है और बिना आपको बताए अदालत अपनी टीम आपके घर की जाँच करने भेज दे और उस टीम के साथ वह शिकायतकर्ता भी मौजूद हो। आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी?

क्या सिविल जज धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखनेवाले क़ानून से नावाक़िफ़ हैं? लेकिन वे कह सकते हैं कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण को उचित माना तो उन्होंने संभल की मस्जिद के सर्वे का आदेश देकर क्या ग़लत किया? 

अदालत का आदेश लोगों तक पहुँचा ही नहीं था कि सर्वेक्षण करने टीम मस्जिद पहुँच गई। स्थानीय मुसलमानों में इसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक था। लेकिन वहाँ के सांसद ने लोगों को शांत करके सर्वेक्षण करवाने में पुलिस और प्रशासन की मदद की। फिर अचानक 24 नवंबर की सुबह दुबारा सर्वे टीम के वहाँ पहुँचने का क्या कारण था? और उस टीम के साथ ‘जय श्रीराम’ के भड़काऊ नारे लगाते लोगों के होने का क्या तर्क है?
हम कह सकते हैं कि इसके बावजूद मुसलमानों को उत्तेजित नहीं होना चाहिए था, पत्थरबाज़ी नहीं करनी चाहिए थी। लेकिन क्या प्रशासन और पुलिस को यह नहीं अनुमान करना चाहिए था कि ऐसी परिस्थिति में सामूहिक उत्तेजना हो सकती है? क्या इसके पहले उसे उस इलाक़े के लोगों से बातचीत नहीं करनी चाहिए थी और उस इलाक़े के ज़िम्मेदार लोगों को विश्वास में नहीं लेना चाहिए था? क्या सर्वे टीम के अलावा नारा लगाते लोगों को मस्जिद तक आने से नहीं रोकना चाहिए था? और उस टीम के साथ शिकायतकर्ता क्योंकर मौजूद थे?  
प्रशासन और पुलिस में शामिल होते वक्त भावी अधिकारियों को  तनावपूर्ण स्थितियों में इस क़िस्म की एहतियात बरतने की हिदायत प्रशिक्षण के दौरान दी जाती रही है। लेकिन अब प्रशासन का यह मानना है कि मुसलमानों को उत्तेजित होने का कोई अधिकार नहीं है। उनके धार्मिक स्थलों के साथ बिना उन्हें सूचना के कुछ भी किया जा सकता है, उनके घरों में घुसकर , उनकी मस्जिद के ऊपर कोई भगवा झंडा लगा सकता है, उनकी गलियों में उन्हें गाली गलौज करते हुए नारे लगा सकता है ।उन्हें किसी तरह उत्तेजित नहीं होना चाहिए।
मुसलमानों को भीड़ होने का हक़ नहीं। वह हक़ सिर्फ़ हिंदुओं को है। हिंदू 500 साल पहले की किसी काल्पनिक घटना को लाएकर आज उत्तेजित होकर,भीड़ की शक्ल में मुसलमानों पर हमला कर सकते हैं। पुलिस उनकी भावना समझती है और उसे व्यक्त होने देती है। उसे स्वतःस्फूर्त माना जाता है। लेकिन  मुसलमान को आज उसके साथ कुछ भी किया जाए, उत्तेजित होने का अधिकार नहीं है। अगर वह उत्तेजित हो,तो उसे साज़िश और पूर्वनियोजित ठहराया जाता है। 
संभल की हिंसा के बाद एक अधिकारी का यह बयान बहुत महत्त्वपूर्ण है कि वे नहीं मानते कि मुसलमानों की प्रतिक्रिया स्वतःस्फूर्त थी। इसका अर्थ यह है कि यह पूर्व नियोजित और संगठित हिंसा थी जिसके पीछे कुछ साज़िश और उकसावा हो सकता है। लेकिन जब सुबह सुबह सर्वे टीम अचानक, बिना पूर्व सूचना के पहुँच गई तो हिंसा पूर्व नियोजित कैसे हो सकती है?
इन सारे सवालों का जवाब निष्पक्ष जाँचसे मिल सकता है। लेकिन क्या अब भारत में राजकीय संस्थाओं में  निष्पक्षता की उम्मीद  कर सकते हैं? यही सवाल कृष्ण प्रताप सिंह ने उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों पर अपने लेख में (https://rb.gy/5wsfb8) किया है: “उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीटों के उपचुनावों के नतीजों की विश्वसनीयता का सवाल कम से कम इस मायने में नतीजों से बड़ा हो गया है कि जिस तंत्र पर इनमें ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी थी, वही उसके आड़े आकर मनमाने तौर पर उसे नापसंद मतदाताओं को अपने मताधिकार के इस्तेमाल से रोकता दिखाई दिया और जिस चुनाव आयोग को तटस्थ रहकर स्वतंत्र व निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करना था, उसने इस ओर से या तो आंखें मूंदे रखीं या ‘बहुत कुछ’ देखकर भी ‘बहुत कम’ देखा।”
वक़्त-बेवक़्त से और खबरें
 जो मतदाता भाजपा को नापसंद थे उन्हें बूथ तक पहुँचने से भाजपा रोकना चाहे, यह तो समझ सकते हैं हालाँकि यह भी अपराध है लेकिन उन्हें पुलिस और अधिकारी क्यों रोक रहे थे? कृष्ण प्रताप सिंह नौकरशाही को भाजपा की घरेलू नौकर की भूमिका में देखकर दुखी हैं। यह तो साफ़ है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं, भारत के अधिकतर राज्यों की नौकरशाही और पुलिस ने ख़ुद को वैचारिक टूर पर भाजपा से नत्थी कर लिया है। 
चुनावों पर इस वफ़ादारी का क्या असर हुआ है, यह पता करना आसान नहीं। लेकिन  भाजपा की जीत का नौकरशाही, पुलिस और अदालत के रुख़ पर क्या असर होगा, यह संभल की घटना ने बतला दिया है। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अपूर्वानंद
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

वक़्त-बेवक़्त से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें