रामनवमी के दौरान शौर्य प्रदर्शन के नाम पर की जा रही हिंसा के बीच कुछ सकारात्मक बात करने का दबाव है। मेरी बेटी ने ध्यान दिलाया कि अभी कुछ दिन पहले ही जिन दरख्तों ने अपने बदन से सारे पत्ते गिरा दिए थे और निष्कवच खड़े थे, उनकी शाखें को पत्तियों ने ढँकना शुरू कर दिया है। अभी गाढ़ा हरा रँग आने में देर है। ललछौंह पत्तियाँ जीवन की अनिवार्यता का आश्वासन देती हैं। लेकिन यह सकारात्मकता चैन नहीं लेने देती। फिर उसे इंसानी ज़िंदगी में कहाँ खोजें?