अशोका यूनिवर्सिटी से प्रोफ़ेसर प्रताप भानु मेहता के इस्तीफे के बाद उच्च शिक्षा संस्थानों में/की आज़ादी के प्रश्न पर बहस चल ही रही है। लेकिन अंग्रेज़ी में। अकादमिक स्वतंत्रता हिंदी का विषय नहीं है। इसके कई कारण हैं। एक तो यह कि अशोका विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों की चिंता भी हिंदी नहीं रही है। यहाँ हिंदी से तात्पर्य राजभाषा नहीं है बल्कि एक भारतीय भाषा है कहने को।
प्रताप भानु मेहता का इस्तीफा: अंतहीन समझौतों के लिए खुलता रास्ता!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2021

श्रेष्ठता हमेशा ही जल्दबाज होती है और स्वतंत्रता की बलि दे सकती है। एक क्या बीसियों प्रताप को कुर्बान किया जा सकता है जिससे अशोका को श्रेष्ठता के लिए सुरक्षित किया जा सके। प्रश्न यह है कि यह श्रेष्ठता है ही क्या चीज़? क्या यह एक ब्रांड है?
अंग्रेज़ी भी अब भारतीय भाषा ही कहलाएगी लेकिन हमें मालूम है कि बावजूद अपनी लोकप्रियता के वह अंग्रेज़ी जो आपको ऊँचा ओहदा या ऊँचे ओहदेवालों की संगत दे सकती है, आज भी हिन्दुस्तान की आबादी के एक नगण्य अंश को ही उपलब्ध हो सकती है।