“टाटा बिड़ला की सरकार, नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।”छात्रजीवन में जाने कितनी बार यह नारा लगाया हमने सरकार विरोधी प्रदर्शनों में। तब टाटा और बिड़ला के नाम प्रतीक थे पूँजीपति वर्ग के। हम सरकार की उन नीतियों का विरोध कर रहे थे जो हमारी समझ से पूँजीपति वर्ग को लाभ पहुंचाते थीं। तब हमारे आंदोलनों का विरोध करते हुए उन्हें किसी ने देश का प्रतिनिधि नहीं कहा था। उन्होंने भी कभी ख़ुद को इस रूप में पेश नहीं किया था। हालाँकि टाटा, बिड़ला और बजाज को हम सिर्फ़ पूँजीपतियों के तौर पर नहीं जानते। उनकी भूमिका राष्ट्र निर्माण में मात्र अपने लिए मुनाफ़ा कमाने और अपनी संपत्ति की वृद्धि तक नहीं थी। आधुनिक भारत के निर्माण में उनका योगदान है। उद्योग स्थापित करने तक ही नहीं, शिक्षा और शोध या स्वास्थ्य के क्षेत्रों में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। देश के आरंभिक पूँजीपतियों में देश के लोगों के प्रति ज़िम्मेवारी का भाव था। बजाज ने तो अंग्रेज़ी राज में भी खुलकर गाँधी और आज़ादी के आंदोलन का साथ दिया।
सेठ पोषित राजतंत्र में बदल रहा है देश
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2025

भारत में पहले दौर के पूंजीपतियों और मौजूदा दौर के पूंजीपतियों का महीन अंतर समझा रहे हैं पत्रकार और लेखक अपूर्वानंद। उनके मुताबिक पहले दौर के पूंजीपति राष्ट्र निर्माण में भी भूमिका निभाते रहे हैं। नया दौर सेठ तंत्र विकसित कर रहा है, जो सिर्फ अपने मुनाफे के बारे में सोचता है।