बहुसंख्यकवाद पर अंतरराष्ट्रीय बहस की ज़रूरत है। यह हमारे नौजवान दोस्त अलीशान जाफरी का कहना है। हमारे बीच इस बात को लेकर लंबे अरसे से चर्चा चल रही है। लेकिन शायद अब वक़्त आ गया है कि इसे किसी एक ख़ास मुल्क या मज़हब या समुदाय को लगनेवाली बीमारी न मानकर वैसे ही महामारी माना जाए जैसे हम कोरोना वायरस के संक्रमण को मानते हैं। दोनों में बड़ा फ़र्क़ यह है कि कोरोना वायरस को इंसान ने पैदा नहीं किया जबकि बहुसंख्यकवाद ख़ास इंसानी ईजाद है।