संख्या में बेहद कम और बेहद धनवान अरबपति भारतीयों के साथ क्या और कैसा व्यवहार किया जाए, यह देश के ‘बहुसंख्यक’ गरीबों से पूछकर ही तय किया जाना चाहिए? क्या ऐसा हो सकता है? क्या जस्टिस शेखर इस पर कुछ बोलेंगे?
शायद अब वक़्त आ गया है कि इसे किसी एक ख़ास मुल्क या मज़हब या समुदाय को लगनेवाली बीमारी न मानकर वैसे ही महामारी माना जाए जैसे हम कोरोना वायरस के संक्रमण को मानते हैं।