किसी हत्या की भर्त्सना करने में अगर ज़बान अटकने लगे, तब हमें अपने बारे में सोचना चाहिए। बेहतर यह हो कि भर्त्सना का मौक़ा ही न आए लेकिन ऐसा होता नहीं है। जो आस्तिक हैं, वे आस्तिक होने के बावजूद ‘उसका’ काम अपने हाथ में ले लेते हैं। ऐसा नहीं है कि नास्तिक हत्या नहीं करते लेकिन आस्तिकों को तो कम से कम ‘उसके’ काम में दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए अगर उसके इकबाल पर उन्हें सचमुच यकीन है।
सिंघु बॉर्डर: लखबीर सिंह के हत्यारों की निंदा करने में किस बात का डर?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 18 Oct, 2021

लखबीर सिंह के परिवार से कहा गया कि वे अंतिम संस्कार तो कर सकते हैं लेकिन कोई धार्मिक संस्कार नहीं करने दिया जाएगा। क्यों किसी राजनीतिक दल के लोग लखबीर सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए? लखबीर सिंह के परिवार को क्यों इस घड़ी में अकेला छोड़ दिया गया? क्या उनका वोट किसी को नहीं चाहिए?
हत्या अलग-अलग कारणों से की जाती है लेकिन एक हत्या वह है जो इनमें सबसे जघन्य है और वह ईश्वर या अल्लाह या रब की शान की हिफाजत के नाम पर की जाती है। क्योंकि इस प्रकार की हत्या मनुष्य के अहंकार की अभिव्यक्ति है और ‘उससे’ भी ऊपर होने का एलान।
भारत में लेकिन जिस बात पर हमें फिक्र होनी चाहिए कि ऐसी हत्या से हमें जितनी परेशानी नहीं उतनी इससे होती है कि हमारे मुताबिक़, जिन शब्दों में हम चाहते हैं ठीक-ठीक उन शब्दों में, उस लहजे में हत्या की निंदा या भर्त्सना क्यों नहीं हो रही।