सावरकर पर नए सिरे से बहस छिड़ गई है। उस प्रसंग में ऐतिहासिक तथ्य क्या थे यह तुरंत उजागर हो गया। यह जानने के लिए किसी नए शोध की ज़रूरत नहीं है कि गांधी के मशविरे पर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार को माफीनामे नहीं लिखे थे। इसलिए उस प्रसंग को आगे खींचने की आवश्यकता नहीं।
सावरकर विवाद: क्या पिछली सदी के विचारों के भरोसे हम आगे बढ़ पाएंगे?
- विचार
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- 29 Mar, 2025

चाहे वे गांधी हों या नेहरू या सावरकर या सुभाष या बाबा साहब आंबेडकर। हमारे विचार भी पिछली सदी के पूर्वार्द्ध के हैं। हर बात में हम या तो गांधी का हवाला देते हैं या किसी और का। वे ही हमारे संदर्भ बने हुए हैं। रास्ता आगे को जाता है लेकिन हमारी निगाहें पीछे को मुड़ी हैं।
लेकिन इस बहाने कुछ और बातों पर विचार करना हमारे लिए स्वास्थ्यकर होगा।
अगर हम पिछले 7 वर्षों की सार्वजनिक चर्चाओं को देखें तो मालूम होगा कि हम ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तित्वों पर बहस में उलझे रहे हैं।
अकबर महान थे या राणा प्रताप, हल्दी घाटी का युद्ध किसने जीता था, पद्मिनी थी या नहीं, अलाउद्दीन खिलजी कितना जालिम था, औरंगजेब और दारा शिकोह में अगर दारा शिकोह बादशाह होता तो भारत का भविष्य कुछ और होता, आदि-आदि।