हर मौत हमें अलग-अलग तरीके से प्रभावित करती है। हम पर कितना असर पड़ेगा, यह जिसकी मौत हुई है उससे हमारे संबंध की निकटता, प्रगाढ़ता या दूरी से तय होता है। हालाँकि मनुष्यता का तकाजा है कि प्रत्येक मृत्यु हमें विचलित करे लेकिन परिजन, स्वजन में भी बिछड़ गए व्यक्ति की उम्र, मृत्यु के कारण से यह निर्धारित होता है कि हमें किस तरह का शोक होगा।
कश्मीर में हत्याएँ: इंसानियत का सबूत देने को आगे आएँ घाटी के मुसलमान
- वक़्त-बेवक़्त
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- 11 Oct, 2021

घाटी में हिंदू और सिख अल्पसंख्यक हैं। इसलिए उनकी हत्या अधिक गंभीर मसला है। बावजूद इसके कि जनवरी से अब तक जो 28 हत्याएँ हुई हैं, उनमें 23 मुसलमान हैं, हिंदुओं, सिखों और बाहर से आए लोगों में सुरक्षा का भाव पैदा करना वहाँ के स्थानीय मुसलमानों का फर्ज है।
एक शिशु और युवक की मृत्यु और परिपक्व आयु में किसी का गुजरना, दोनों हमें अलग ढंग से प्रभावित करते हैं। हमें यह बुरा और अजूबा भी नहीं लगता कि जब हम मातम में डूबे हैं, अगल-बगल की ज़िंदगी की रफ्तार में कोई फर्क नहीं पड़ा है। हम कोई शिकायत नहीं करते।
ऐसी मौतें लेकिन होती हैं जिन पर हम चाहते हैं कि सब दुखी हों: परिचित, अपरिचित सभी। गुजरात का भूकंप हो या ओडिशा का तूफान, उसमें मारे गए लोगों पर बिहार, केरल, गोवा, हर जगह शोक होना स्वाभाविक है और होता है। यही मनुष्य का स्वभाव है।