‘आपको क्या लगता है, क्या यह विरोध बढ़ेगा?’
दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा के विरोध का जिम्मा इसी समुदाय का नहीं है!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 5 Oct, 2020

बाबा साहब आंबेडकर और संविधान के चलते दलितों को बराबरी का अधिकार क़ानूनी तौर पर प्राप्त हुआ, लेकिन एक व्यापक जीवन में शामिल होने का अनुभव उन्हें कभी नहीं मिला। यह अभी भी सपना ही है कि एक दलित सामान्य लोकसभा या विधानसभा की सीट पर जीत जाए। वैसे ही जैसे एक मुसलमान ग़ैर मुसलमान-बहुल सीट से चुना जा सके। इसलिए जंतर मंतर का विरोध भी अगर पूरे समाज का न था तो क्या ताज्जुब!
स्वर में आशा थी और आशंका भी। जंतर मंतर पर हाथरस में एक दलित किशोरी के साथ हुई हिंसा और उसकी मृत्यु के ख़िलाफ़ हुए विरोध प्रदर्शन की अगली सुबह एक मित्र ने फ़ोन करके पूछा। प्रश्न से ही साफ़ था कि वह चाहते थे कि यह विरोध और तेज़ हो। लेकिन वह आशंकित भी थे साथ-साथ कि कहीं यह वक़्ती उबाल भर होकर न रह जाए।