“जो हाथरस जा रहे हैं, उनके चेहरे देखिए। ये वही हैं जो नागरिकता के नए कानून (सीएए) का विरोध कर रहे थे।” यह सावधान करने के अंदाज में बताया जा रहा है। मानो पेशेवर अपराधियों से सावधान किया जा रहा हो। कहा गया कि इन सबके पोस्टर हमने चौराहों पर लगवाए थे। ये वही हैं जो हाथरस में उस दलित लड़की के परिवार के साथ हमदर्दी जताने पहुँच रहे हैं। पूछा जा रहा है कि बाहरी लोग आखिर क्यों उस दलित परिवार के साथ सहानुभूति जताना चाहते हैं? ज़रूर इसके पीछे उनका कोई इरादा होगा?
हाथरस: अन्याय के ख़िलाफ़ हर मोर्चे पर लड़ रहे ये लोग कौन हैं?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 1 Nov, 2020

वे ही चेहरे! बार बार! जगह-जगह! क्यों? क्या लेना-देना है इनका उन सबके साथ जो ये सब कुछ छोड़-छाड़कर उन सबके करीब जा खड़े होते हैं? एक सीधा सा जवाब है। ये वे लोग हैं जो नाइंसाफी को पहचानते हैं। जो यह जानते हैं कि दुनिया में कहीं भी, कभी भी अन्याय हो रहा हो, भले ही वह जिनके साथ वह हो रहा है, उनका उनसे कोई रिश्ता नहीं, न खून का, न जाति, न नस्ल का, न राष्ट्र का और न वे नाइंसाफ़ी में शामिल हैं। लेकिन वे जानते हैं कि अगर वे सब न बोले, अगर उन्होंने नाइंसाफ़ी की पहचान न की तो वह जारी रहेगी।
ठीक ही कहा जा रहा है। वे ही लोग जो सीएए का विरोध कर रहे थे, हाथरस में भी एक दलित लड़की के अपमान, उसके साथ हिंसा और हत्या का विरोध करने और उसके परिवार के इंसाफ़ की लड़ाई में उनके साथ खड़े होने के लिए पहुँच रहे हैं। ये वही हैं जो अख़लाक़ की हत्या या तबरेज़ अंसारी के क़त्ल के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे।