“तो आपको क्या लग रहा है? चीज़ें बदल रही हैं? क्या चुनाव ने कुछ बदला है?” 4 जून को गुजरे 2 महीने हो गए लेकिन लोगों के सवाल में तब्दीली नहीं आई है। हमसे मिलने वाले एक ही तरह के हैं। जिन्हें कुछ हिक़ारत और कुछ दया के साथ धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है। उनके स्वर में चिंता है और उम्मीद भी है। 18वीं लोक सभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अपने दम पर बहुमत न मिलने को बड़ी घटना माना गया। जो सरकार शासन के हर मोर्चे पर विफल हो गई हो उसका सत्ता से बाहर होना जनतंत्र के लिए स्वाभाविक ही माना जाना चाहिए।
तानाशाह की जमीन दरक रही है, लेकिन संवैधानिक संस्थाओं को शर्म नहीं
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 19 Aug, 2024

4 जून के बाद क्या कुछ बदला है। चुनाव आयोग आज भी जनतंत्र के लिए नहीं काम नहीं कर रहा,वह भाजपा का वफ़ादार सहायक है। पुलिस और प्रशासन भी बदलने को तैयार नहीं। सड़क और शासन की हिंदुत्ववादी हिंसा नहीं थमी है। मशहूर स्तंभकार और चिंतक अपूर्वानंद कुछ सुलगते सवालों के साथ सत्य हिन्दी पर फिर हाजिर हैं। पढ़िए और पढ़वाइएः