“तो आपको क्या लग रहा है? चीज़ें बदल रही हैं? क्या चुनाव ने कुछ बदला है?” 4 जून को गुजरे 2 महीने हो गए लेकिन लोगों के सवाल में तब्दीली नहीं आई है। हमसे मिलने वाले एक ही तरह के हैं। जिन्हें कुछ हिक़ारत और कुछ दया के साथ धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है। उनके स्वर में चिंता है और उम्मीद भी है। 18वीं लोक सभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अपने दम पर बहुमत न मिलने को  बड़ी घटना माना गया। जो सरकार शासन के हर मोर्चे पर विफल हो गई हो उसका सत्ता से बाहर होना जनतंत्र के लिए स्वाभाविक ही माना जाना चाहिए।