बांग्लादेश में जगह जगह हिंदू अपनी हिफ़ाज़त की माँग करते हुए हज़ारों की संख्या में प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके साथ बड़ी तादाद में मुसलमान भी हैं। हिंदू इन प्रदर्शनों में धार्मिक नारे भी लगा रहे हैं। अंतरिम सरकार के सारे सदस्य उनके साथ खड़े हैं। कोई इन प्रदर्शकारियों पर यह कहकर हमला नहीं कर रहा कि ये हिंदू बांग्लादेश को बदनाम करने के भारतीय/अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र के औज़ार हैं, कि उन्हें सीमा पार से भड़काया जा रहा है। बांग्लादेशी हिंदू आत्मविश्वासपूर्वक कह रहे हैं कि वे बांग्लादेशी हैं और कोई उन्हें वहाँ से भगा नहीं सकता। वे अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए विशेष प्रावधान की माँग कर रहे हैं। मालूम हुआ कि उनकी माँगों में एक माँग दुर्गापूजा के लिए 5 दिनों की छुट्टी की भी है। इससे उनकी मानसिक अवस्था का पता चलता है। वे अगर सिर्फ़ अपने जानोमाल को लेकर चिंतित होते तो दो महीना दूर पूजा उनके दिमाग़ में न होती!
जगह जगह मंदिरों के सामने,हिंदुओं की आबादीवाले मोहल्लों में छात्र और दूसरे मुसलमान पहरा दे रहे हैं, चौकसी में लगे हुए हैं। मुसलमान धार्मिक नेता मंदिरों का दौरा कर रहे हैं। सार्वजनिक वक्तव्य दे रहे हैं कि वे हिंदुओं के साथ हैं।
छात्र संसद की सफ़ाई कर रहे हैं।छात्र ट्रैफ़िक सँभाल रहे हैं। 5 अगस्त की आस पास जो अराजकता हुई थी, उसमें लूटी गई चीज़ें भी वापस जमा की जा रही हैं।
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भारत के लोगों को इनकी खबर देने में किसी को दिलचस्पी नहीं है। बांग्लादेश की जनता यह देखकर निराश है कि भारत के सत्ताधारी दल से जुड़े लोग उनके देश में हुई जनतांत्रिक क्रांति के ख़िलाफ़ घृणा प्रचार कर रहे हैं।
वह यह भी देख रही है कि क्रांति के कारण बांग्लादेश में उत्पन्न अराजकता और हिंसा का विरोध करने के नाम पर वे लोग अपने देश में मुसलमानों पर हमला कर रहे हैं। उनकी झुग्गी-झोंपड़ियों को तोड़ रहे हैं, उनके साथ मार पीट कर रहे हैं। वह देख रही है कि भारत में सत्ताधारी दल उनकी जनतांत्रिक क्रांति के विरोध में है और साबित करना चाहता है कि यह क्रांति नहीं, भारत विरोधी, बल्कि साज़िश है। बांग्लादेश के विद्वान भी भारत के इस सरकारी रुख़ से हतप्रभ तो नहीं हैं लेकिन निराश हैं। उनका कहना है कि यह बहुत दुखद है कि भारत की सरकार अपने क्षुद्र स्वार्थ के कारण बंगलादेश की जनता की जनतांत्रिक आकांक्षाओं का स्वागत करने की जगह अपनी प्रिय तानाशाह के पतन से दुखी है। उसने न सिर्फ़ अपदस्थ तानाशाह को शरण दे रखी है बल्कि क्रांति को बदनाम करने के लिए अभियान चला रखा है।
बांग्लादेश के लोग देख रहे हैं कि भारत में बड़े पैमाने पर झूठे वीडियो प्रसारित किए जा रहे हैं जिनके सहारे दावा किया जा रहा है कि बांग्लादेश में हिंदुओं का जनसंहार किया जा रहा है। ज़्यादातर वीडियो झूठे हैं लेकिन उन्हें तेज़ी से फैलाया जा रहा है। अनेक प्रतिष्ठित हिंदू पूछ रहे हैं कि क्या धर्म के आधार पर बांग्लादेश का विभाजन नहीं कर देना चाहिए!
बांग्लादेश के लोगों ने नोट किया कि भारत के प्रधानमंत्री ने अंतरिम सरकार के प्रमुख डॉक्टर मोहम्मद युनूस को औपचारिक बधाई देते हुए मात्र वहाँ के हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की माँग की है। अपने पहले वक्तव्य में भारत ने जनतांत्रिक क्रांति का स्वागत नहीं किया, उसकी सफलता पर प्रसन्नता ज़ाहिर नहीं की। बल्कि जैसा बांग्लादेश के अख़बारों ने नोट किया कि भारत ने एक विशेष समिति का गठन किया जो बांग्लादेश में भारतीयों और वहाँ के हिंदुओं की हिफ़ाज़त का ख़्याल रखेगी। यह सीधे तौर पर किसी देश के अंदरूनी मामलों में दख़लंदाज़ी है। जब बांग्लादेश में तानाशाही के ख़िलाफ़ आंदोलन चल रहा था तब तो भारत ने उसे उस देश का भीतरी मामला बतलाया था। उसपर कोई टिप्पणी नहीं की थी। फिर अभी वह बांग्लादेश के भीतरी मामले में क्योंकर दखल दे रहा है? वह यह क्यों नहीं कह रहा कि बांग्लादेश के अल्पसंख्यक वहाँ के नागरिक हैं और उनकी हिफ़ाज़त वहाँ की सरकार का मामला है। वह कैसे अपने अर्ध सैन्य बलों की समिति बना सकता है जो बांग्लादेश के हिंदुओं की सुरक्षा करेगी।क्या कोई बता सकता है कि यह समिति कैसे यह काम करेगी?
संसद में भी विदेश मंत्री को स्वीकार करना पड़ा कि बांग्लादेश में छात्र और शेष लोग हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा कर रहे हैं। फिर उस घृणात्मक उत्तेजना का क्या उद्देश्य हो सकता है जो भाजपा के लोग भारत में फैला रहे हैं?
वे क्यों राहुल गाँधी पर आक्रमण कर रहे हैं कि उन्हें बांग्लादेश के हिंदुओं की चिंता नहीं है? अगर सरकार के मुताबिक़ ही, बांग्लादेश में लोग अल्पसंख्यकों, हिंदुओं के साथ खड़े हैं तो भारत में इस चीख चिल्लाहट का क्या मतलब? या भाजपा यह कहेगी कि सच्चाई कुछ भी हो, हिंदुओं में असुरक्षा भरने के लिए हर प्रकार का हथकंडा अपनाने का अधिकार उसे है? कि उसे झूठ बोलने का हक़ है आगरा उससे मुसलमानों के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने में मदद मिलती हो?
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क्या बांग्लादेश की क्रांति का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष हिंदुओं पर हमला है?
क्या यही बात इस क्रांति को परिभाषित करती है? उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने, जो खबरों के मुताबिक़ भारतीय जनता पार्टी के अगले प्रमुख के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली पसंद हैं, बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है उसे सनातन धर्म पर हमला बतलाया है।उन्होंने सारे सनातनियों की एकता का आह्वान किया है। क्या वे यह नारा देना चाहते हैं: “दुनिया के सनातनियों एक हो जाओ, पूरी दुनिया तुम्हारे ख़िलाफ़ है’?
यह सच है कि बांग्लादेश में जनतांत्रिक क्रांति के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के इस्तीफ़ा देकर देश से भाग जाने के बाद वहाँ अराजकता का माहौल है। गुंडों की बन आई है। वे लूट पाट, आगज़नी और हिंसा कर रहे हैं। पूर्व सत्ताधारी दल अवामी लीग और उसके संगठनों के लोगों पर हमले हो रहे हैं। मंदिरों पर हमले हो रहे हैं। हिंदुओं के घरों, दुकानों को निशाना बनाया जा रहा है।पुलिस ग़ायब है।इस अराजकता का लाभ निश्चय ही वे लोग उठा रहे हैं जो भाजपा या आर एस एस की तरह ही अल्पसंख्यक विरोधी हैं। हमें नहीं भूलना चाहिए कि 1947 में अराजकता का लाभ उठाकर आर एस एस ने कोशिश की थी कि भारत में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दी जाए कि यहाँ से मुसलमान भागने को मजबूर हो जाएँ।
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हर समय, हर समाज में आर एस एस जैसी शक्तियाँ होती हैं जो किसी बड़े उद्देश्य की आड़ में अपने क्षुद्र संकीर्ण ‘राष्ट्रवादी’ मक़सद को साधने की साज़िश करती हैं।
बांग्लादेश में भी दोनों चीज़ें हो सकती हैं। एक तो इस्लामवादी सक्रिय हो गए हों तो ताज्जुब नहीं क्योंकि अभी राज्य का तंत्र लगभग निष्क्रिय था। और वे उस देश में इस्लामवादी हैं जैसे भारत में हिंदुत्ववादी हैं। दूसरे गुंडे और असामाजिक तत्त्व ये हमले कर रहे हों ताकि उनपर ध्यान न जाए। असल सवाल यह है कि राज्य का रुख़ क्या है, अभी जो जनतांत्रिक क्रांति हुई है, उसका क्या रुख़ है। प्रधानमंत्री, सारे मंत्री, छात्र नेता, सब दृढ़ता से इस हिंसा के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं। वे कह रहे हैं कि यह क्रांति मुसलमानों, हिंदुओं, सबकी है, सबका देश पर बराबर अधिकार है। सरकार में से कोई प्रदर्शनकारी हिंदुओं के ख़िलाफ़ यह कहकर घृणा प्रचार नहीं कर रहा कि वे अभी यह प्रदर्शन करके जनतांत्रिक क्रांति को कमजोर रहे हैं, उसे बदनाम कर रहे हैं। उन्हें कोई राष्ट्रविरोधी नहीं ठहरा रहा।
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भारत का दुर्भाग्य यह है कि यहाँ बांग्लादेश के नेताओं की तरह ज़िम्मेदार लोग सत्ता में या मीडिया में नहीं हैं। उनका उद्देश्य सद्भाव नहीं, विद्वेष का प्रसार है।
हमारे नेताओं में किसी में मोहम्मद यूनुस की तरह ज़ुबान नहीं है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमला होते देख उनकी बाँछें खिल गई हैं। क्योंकि अब इन हमलों के बहाने अपने देश के मुसलमानों पर हमला किया जा सकता है। इसलिए वे बांग्लादेश में हिंदुओं के जनसंहार का असत्य प्रचारित कर रहे हैं। बांग्लादेश के हिंदुओं की शायद ही उन्हें फ़िक्र है। बल्कि अगर ज़्यादा मारे जाएँ तो इन्हें और ख़ुशी हो। अभी तो जनसंहार का झूठ बोलना पड़ रहा है।
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लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से सिर्फ़ एक बात साबित होती है। वह यह कि पूरे दक्षिण एशिया में धर्मनिरपेक्ष लोगों की एकजुटता आवश्यक है। बांग्लादेश की जनतांत्रिक क्रांति ने यह अवसर पैदा किया है कि ढाका में ही एक दक्षिण एशियायी सम्मेलन किया जाए जो पूरे क्षेत्र के लिए एक नया जनतांत्रिक जीवन प्रस्ताव तैयार करे। नारा अगर हो तो यह हो,” सभी जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष एक हों।”
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