जब सामूहिक निरुपायता का भाव प्रबल होकर हमें निष्क्रिय लगे, उसी समय एक अकेले का साहसी स्वर उठकर अंधकार को छिन्न-भिन्न कर देता है। यह अकेला निर्णय उस सामूहिक इच्छा को अभिव्यक्त करता है जो हम सबके भीतर दबी रहती है क्योंकि उसके जाहिर होने के लिए हम सबके पास साहस नहीं होता।
कश्मीर में मौलिक अधिकार छीनने पर कन्नन ने इस्तीफ़ा दिया, आपने क्या किया?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2025

कश्मीर में नागरिकों के मौलिक अधिकार छीने जाने का कारण बताकर केरल में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने इस्तीफ़ा दे दिया। कन्नन का यह वक्तव्य उसी दिन आया है जब देश के उनके मुक़ाबले कहीं अधिक शक्तिशाली, एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश ने, जो प्रेस काउन्सिल के अध्यक्ष हैं, उच्चतम न्यायालय में यह अर्ज़ी लगाई है कि कश्मीर में प्रेस पर लगी पाबंदी वाजिब मानी जाए।
ठीक उस दिन जब प्रायः सारे अख़बारों के पहले पन्ने के साथ कई पन्ने शासक दल के एक नेता की मृत्यु की ख़बर और उनके गुणगान से अटे पड़े थे, एक अपेक्षाकृत युवा प्रशासनिक अधिकारी के निजी निर्णय को पहले पन्ने की ख़बर का दर्जा देने को इन्हीं अख़बारों को मजबूर होना पड़ा। इसका मतलब यही है कि उस अधिकारी ने कुछ ऐसा किया जिसे ये भी, जो इस निज़ाम से दबे हुए हैं, और कुछ तो स्वेच्छापूर्वक उसके पैरोकार हैं, करणीय मानते हैं। कण सबके भीतर का जो शुभ है, वह इस निर्णय से ताक़त पाता है।