जब सामूहिक निरुपायता का भाव प्रबल होकर हमें निष्क्रिय लगे, उसी समय एक अकेले का साहसी स्वर उठकर अंधकार को छिन्न-भिन्न कर देता है। यह अकेला निर्णय उस सामूहिक इच्छा को अभिव्यक्त करता है जो हम सबके भीतर दबी रहती है क्योंकि उसके जाहिर होने के लिए हम सबके पास साहस नहीं होता।