क्या लिखें? और क्यों लिखें? आपके लिखे पर जब आपके मित्र आपको बता रहे हों कि वह व्यर्थ है, कि आपका लिखना कुछ वैसा ही है जैसे एक अँधे कुँए में अंदर मुँह करके कोई पुकार रहा हो, आपकी आवाज़ दीवारों और तलहटी से टकरा कर आप तक लौट आती है। आप किसी को संबोधित नहीं कर रहे, जैसे ख़ुद से बात किए जा रहे हैं। इस बात का क्या लाभ?