कुछ रोज़ पहले समाजशास्त्री सतीश देशपांडे का फ़ोन आया:“एक आश्चर्य की बात बतानी है। मुझे ‘दैनिक भास्कर’ ने जाति-जनगणना पर लेख लिखने को कहा है।” जाति के विषय पर अपने अध्ययन और शोध के लिए  ख्यातिलब्ध समाजशास्त्री से कोई अख़बार लिखने को कहे, इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए? लेकिन सतीश को लिखने का न्योता पाकर ताज्जुब हुआ! मैं उन्हें आश्वस्त किया कि आज के वक्त भी कभी कभी ऐसा होता है कि अख़बार निष्पक्ष दिखना चाहते हैं। इसलिए वे ऐसे लेखकों से भी लिखने को कहते हैं जो आज की सरकार के आलोचक माने जाते हैं। दो रोज़ बाद सतीश से दुबारा बात हुई। “‘दैनिक भास्कर’ ने लेख छापने से मना कर दिया”, उन्होंने बतलाया। यह सुनकर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। सतीश को लिखने के लिए कहना ही अपवाद था, उनका लेख छापने से मना कर देना आज की हिंदी पत्रकारिता के लिहाज़ से स्वाभाविक ही था।