हिन्दी दिवस नजदीक है। 14 सितंबर को है। हिन्दी की दुर्दशा पर लंबी-लंबी बातें होना शुरू हो चुकी हैं। स्तंभकार और चिन्तक अपूर्वानंद का कहना है कि हिन्दी अभी तक ज्ञान की भाषा नहीं बन पाई है। हमारी युवा पीढ़ी हिन्दी अखबारों पर ज्ञान के लिए निर्भर नहीं है। हिन्दी अखबारों से मौलिक चिन्तन और विशेषज्ञों के लेख गायब हैं। ऐसे में हिन्दी की दुर्दशा स्वाभाविक है। टीवी चैनलों ने हिन्दी को सक्रिय घृणा और हिंसा के प्रचार की भाषा बना दी है।