जहाँ हवा और पानी तक शुद्ध नहीं, दूध और घी में धड़ल्ले से मिलावट जारी है, दवा, डॉक्टर और पीएमओ के अधिकारी तक जिस सरकार में जाली नसीब हो जाते हैं, दिवाली में मिठाई तक शुद्ध नहीं मिलती, वहाँ भाषा तो शुद्ध ज़रूर होनी चाहिए!
हिन्दी दिवस नजदीक है। 14 सितंबर को है। हिन्दी की दुर्दशा पर लंबी-लंबी बातें होना शुरू हो चुकी हैं। स्तंभकार और चिन्तक अपूर्वानंद का कहना है कि हिन्दी अभी तक ज्ञान की भाषा नहीं बन पाई है। हमारी युवा पीढ़ी हिन्दी अखबारों पर ज्ञान के लिए निर्भर नहीं है। हिन्दी अखबारों से मौलिक चिन्तन और विशेषज्ञों के लेख गायब हैं। ऐसे में हिन्दी की दुर्दशा स्वाभाविक है। टीवी चैनलों ने हिन्दी को सक्रिय घृणा और हिंसा के प्रचार की भाषा बना दी है।
चिंतक और स्तंभकार अपूर्वानंद जयपुर गए थे। वहां एयरपोर्ट पर सीआईएसएफ अधिकारी और उनके बीच जो वार्तालाप हुआ, वही इस लेख की जमीन है। खाकीवाले से वो बातचीत क्या थी और उसके बाद अपूर्वानंद के विचारों की जो चाशनी बनी है, पेश है। पढ़िएः
कर्नाटक चुनाव में नंदिनी बनाम अमूल के अलावा हिन्दी को भी मुद्दा बनाया जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार मधुरेंद्र सिन्हा का कहना है कि वहां कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नहीं है इसलिए वो हिन्दी विरोध को मुद्दा बना रही है। हालांकि यह उनका अपना विचार है। कर्नाटक चुनाव में फिलहाल नंदिनी बनाम अमूल अभी भी बड़ा मुद्दा है।
फिजी में विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित करके एक बार फिर औपचारिकता पूरी की जा रही है। वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन ने अपने देश में हिन्दी की दुर्दशा पर नजर डाली है।