सुबह जयपुर से दिल्ली की उड़ान वक्त पर पकड़ पाने की बदहवासी थी। लेकिन गेट पर भीड़ न थी। ओम थानवी जी ने हाथ मिलाया और फिर आने की दावत देते हुए अपनी कार में बैठ गए। मैं गेट की तरफ़ बढ़ा। सी आई एस एफ़ के जवान ने हाथ बढ़ाया। मैंने टिकट और अपना पहचान पत्र दिया। दोनों का मिलान करने के बाद पहचान पत्र वापस करते हुए कहा, “अच्छा, तो आप हिंदी पढ़ाते हैं!” “जी।” मैंने उत्तर दिया। “ मुझे बहुत अच्छा लगता है जब कोई हिंदीवाला मिलता है।” अधिकारी ने कहा। मेरे चेहरे पर प्रश्नवाचक भाव उभरता देख बात साफ़ की, “आजकल कहाँ रह गए हैं अपनी भाषा में पढ़नेवाले। हिंदी, संस्कृत तो ख़त्म ही हो रही है।”
अच्छा, तो आप हिंदी पढ़ाते हैं ?
- विमर्श
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- 29 Mar, 2025

चिंतक और स्तंभकार अपूर्वानंद जयपुर गए थे। वहां एयरपोर्ट पर सीआईएसएफ अधिकारी और उनके बीच जो वार्तालाप हुआ, वही इस लेख की जमीन है। खाकीवाले से वो बातचीत क्या थी और उसके बाद अपूर्वानंद के विचारों की जो चाशनी बनी है, पेश है। पढ़िएः