कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी की फैसलाकुन जीत के चलते राजनीतिक विश्लेषकों और टीवी समाचार प्रवाचकों को थोड़ा आराम मिल गया है। चुनाव नतीजे जब आ ही रहे थे, कुछ समय तक ऐसा लगा कि कांग्रेस की सीटें कहीं 113 के आस पास ही न रह जाएँ। अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा, यह सवाल बार बार पूछा जाने लगा। भारतीय जनता पार्टी के नेता, जो जनमत पर डाका डालने में महारत को चाणक्य नीति या कृष्ण नीति कहकर शेखी बघारते हैं, अपने प्लान बी की तरफ़ इशारा करने लगे। बहुत दिन नहीं गुजरे जब सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में इसी प्लान बी का इस्तेमाल करके सरकार गिराने की भाजपा की तिकड़म को ग़ैरक़ानूनी ठहराया था। लेकिन जो दल अनीति को चाणक्य नीति कहकर उसके लिए शाबाशी माँगता है और जिसकी इस तिकड़मबाज़ी की ढिठाई पर विश्लेषक वारी जाते हैं, उसके लिए सर्वोच्च न्यायालय की इस लानत का क्या मतलब!
भाजपा की हार को कमतर दिखलाना बेईमानी !
- वक़्त-बेवक़्त
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- 15 May, 2023

कर्नाटक में भाजपा की हार को एक बौद्धिक तबका पचा नहीं पा रहा है और वो तमाम तरह के तर्कों से जवाब देने की कोशिश कर रहा है। लेखक और स्तंभकार अपूर्वानंद ने ऐसे ही बौद्धिकों की चुटीले अंदाज में खबर ली है। पढ़िएः