देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को, यह नारा नफ़रत और हिंसा भड़काता है या नहीं? दिल्ली उच्च न्यायालय के अनुसार यह इससे तय होगा कि इसका संदर्भ क्या है। 2020 में दिल्ली में की गई हिंसा के पहले एक सभा में संघीय सरकार के मंत्री अनुराग ठाकुर ने यह नारा अपने समर्थकों से लगवाया था। उन्होंने शुरू किया, ‘देश के गद्दारों को’ और जनता ने पूरा किया: ‘गोली मारो सालों को।’ यह एक से अधिक बार किया गया।
कौन सी नफरत नफरत नहीं है
- वक़्त-बेवक़्त
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- 28 Mar, 2022
क्या मुस्कुराते हुए गंभीर बात नहीं की जा सकती? मसलन, अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 80 बनाम 20 की बात की तो उनके होठों पर मुस्कान थी या नहीं? जब वे ‘अब्बाजान राशन ले जाते थे’ की फब्ती कस रहे थे, तब वे मुस्कुरा रहे थे या नहीं? और जब प्रधानमंत्री मेरठ में मतदाताओं को बतला रहे थे कि मुख्यमंत्री जेल-जेल खेल रहे हैं तो उनका लहजा मजाकिया ही तो था!

दिल्ली में उस वक्त विधान सभा के लिए चुनाव-प्रचार चल रहा था।मंत्री, जो भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं, इस प्रचार के दौरान भाषण दे रहे थे जिसके बीच उन्होंने यह नारा लगवाया।
कहा जा सकता है कि मंत्री और भाजपा नेता ने तो गोली मारने को नहीं कहा, उन्होंने पूछा कि देश के गद्दारों के साथ क्या करना चाहिए। यह तो जनता है जिसने स्वतःस्फूर्त तरीके से बतलाया कि गद्दारों के साथ क्या सलूक किया किया जाना चाहिए। लेकिन अगर आप इस वीडियो को देखें तो मंत्री दुबारा यह नारा लगवाते हैं। फिर और उत्साह से जनता गद्दारों को गोली मारने का इरादा जाहिर करती है।
कहा जा सकता है कि मंत्री और भाजपा नेता ने तो गोली मारने को नहीं कहा, उन्होंने पूछा कि देश के गद्दारों के साथ क्या करना चाहिए। यह तो जनता है जिसने स्वतःस्फूर्त तरीके से बतलाया कि गद्दारों के साथ क्या सलूक किया किया जाना चाहिए। लेकिन अगर आप इस वीडियो को देखें तो मंत्री दुबारा यह नारा लगवाते हैं। फिर और उत्साह से जनता गद्दारों को गोली मारने का इरादा जाहिर करती है।