बीसवें साल की शुरुआत। 2002 से 2021। बीस साल बहुत होते हैं। एक पूरी पीढ़ी जवान हो जाती है, एक अधेड़ हो जाती है और एक ढल जाती है। एक व्यक्ति के जीवन के लिए यह अवधि कम नहीं है। राष्ट्र के लिए शायद यह सागर में बूँद की तरह है। इसलिए कुछ लोग ऐतिहासिक और दार्शनिक रुख लेकर कहते हैं कि इतनी छोटी अवधि के आधार पर किसी समाज के बारे में कोई समझ नहीं बनानी चाहिए, कोई निर्णय नहीं करना चाहिए। वे एक तरह से ठीक कहते हैं। लेकिन एक व्यक्ति का जीवन इस बीच पूरी तरह बदल गया होता है। लेकिन भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है कि 2002 को उसकी ढलान पर फिसलन शुरू हुई, वह अब इतनी तेज़ हो गई है कि वह खाई में गिर चुका है या उससे बच सकता है, यही अब तय करना बाक़ी रह गया है।
इंसानियत के पानी की ज़रूरत अब गुजरात के बाहर भी!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 1 Mar, 2021

2002 की हिंसा ने गुजरात में विभाजन मुकम्मल कर दिया। इस हिंसा ने हम जैसे बहुत से ग़ैर गुजरातियों का परिचय गुजरात से करवाया। गुजरात में जो हो रहा था, वह हमारे राज्यों में नहीं हो सकता, इस खुशफहमी में भी हम काफ़ी वक़्त तक रहे। लेकिन वहाँ जो मुसलमानों के साथ किया गया वह एक मॉडल बन गया। इन 19 सालों में गुजरात ने जो दिशा पकड़ ली है, उससे क्या वह पीछे मुड़ पाएगा?
2002 की संख्या भारत के लिए वैसे ही महत्त्वपूर्ण है जैसे 1992 की। एक हिस्सा इसे गोधरा काण्ड के साल के तौर पर याद करता है। यह आधा सच है और पूरी कहानी नहीं कहता। 27 फ़रवरी, 2001 की सुबह गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन से निकलते ही सिग्नल के पास साबरमती एक्सप्रेस के एक डब्बे में आग लगती है। 59 लोग मारे जाते हैं। वे सब हिंदू हैं और उनमें से प्रायः सभी अयोध्या से लौट रहे हैं। ट्रेन अयोध्या से आ रही है। ये मामूली यात्री नहीं हैं। यह ख़बर नहीं छपती कि साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर 6 में आग लगने से यात्री जलकर मारे गए। ख़बर यह छपती है कि साबरमती एक्सप्रेस में मुसलमानों ने आग लगा दी और 59 कार सेवकों को जलाकर मार डाला।