फ्रांस में कुछ दिन पहले एक अध्यापक की सर काट कर की गई हत्या ने फ्रांस को ही नहीं, पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। फ्रांस के बाहर के मुसलमानों के भीतर इसने एक बहस पैदा की है। भारत में भी मुसलमान इस हत्या के व्यापक अभिप्राय पर विचार कर रहे हैं। कल 25 अक्टूबर को ‘इंडियन मुसलिम फ़ॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी’ ने इस संदर्भ में एक चर्चा आयोजित की। इसमें जावेद आनंद के साथ ‘न्यू ऐज इस्लाम’ के स्तंभकार अरशद आलम, इस्लाम की विदुषी जीनत शौकतअली, सामाजिक कार्यकर्ता फ़िरोज़ मिठीबोरवाला, इस्लाम के विद्वान ए.जे. जवाद शामिल थे।
‘क्यों न कितना ही गंभीर धार्मिक अपमान हो, हिंसा जायज़ नहीं’
- वक़्त-बेवक़्त
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- 26 Oct, 2020

फ्रांस में की गई शिक्षक की हत्या का धार्मिक दूषण वाले क़ानून से क्या रिश्ता? वक्ताओं की चिंता यह थी कि चूँकि इस्लामी देश धार्मिक दूषण के लिए मृत्यु दंड की सज़ा रखते हैं, एक आम मुसलमान इसे उचित दंड मान सकता है। जहाँ सरकार यह न कर रही हो, वह ख़ुद को ही धर्म का मुहाफिज मानकर यह दंड देने तक जा सकता है। फ्रांस की यह घटना अपवाद नहीं है।
यह गोष्ठी इस हत्या की स्पष्ट शब्दों में भर्त्सना करने के अलावा धार्मिक दूषण (ब्लासफ़ेमी) और पैगम्बर के अपमान से संबंधित क़ानूनों को ख़त्म करने के विषय पर थी। इस चर्चा में कई ऐसी बातें उठीं जिनसे इस स्तंभ के लेखक और पाठकों को जूझना पड़ता रहा है। लेकिन उनपर आने के पहले इस चर्चा की पृष्ठभूमि को दुहरा लेना ज़रूरी है।