हम जैसे लोगों पर आरोप लगता है कि हम प्रायः नकारात्मक बातें ही करते हैं। हमें कुछ भी अच्छा नहीं दीखता। सकारात्मक रवैए की हमारे भीतर कमी है। सकारात्मकता की मांग प्रायः शक्तिशाली के वर्चस्व की स्वीकृति में बदल जाती है। मसलन, प्रधानमंत्री के जन्मदिन के मौक़े पर ढाई करोड़ टीके लगने के रिकॉर्ड पर सकारात्मकता प्रदर्शित करते हुए ताली बजाएँ या उस उत्सव के क्षण में भी यह नकारात्मक सवाल पूछना जारी रखें कि क्यों भारत के टीके का रोज़ाना औसत 50 से 60 लाख ही क्यों रहा है। अगर यह हमारा औसत है तो फिर प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर 2.5 करोड़ टीके एक दिन में कहाँ से आ गए? क्या इस दिन के लिए टीके जमा किए जा रहे थे? या अगर टीकाकरण की हमारी क्षमता इतनी बढ़ गई कि हम एक दिन में 2.5 करोड़ टीके दे सकते हैं तो फिर जन्मदिन का सूरज डूबते ही अगले दिन क्यों यह संख्या घटकर 64 लाख रह गई?
सद्भाव की सकारात्मक ऊर्जा
- वक़्त-बेवक़्त
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- 20 Sep, 2021

किस तरह के सकारात्मक रवैए की अपेक्षा की जाती है? प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर एक दिन में 2.5 करोड़ टीके लगने से पहले और बाद में 50-60 लाख ही टीके लगाया जाना कैसी सकारात्मकता है और केरल में ईसाई-मुसलमान सद्भाव की बात करना कैसी सकारात्मकता?
इन प्रश्नों को नकारात्मक दिमाग़ की उपज कहा जा सकता है। यह कि बहाना प्रधानमंत्री के जन्म दिन का ही क्यों न हो, हमें टीकों की रिकॉर्ड संख्या का स्वागत करना ही चाहिए! लेकिन जो यथार्थवादी हैं, वे जनता को सजग रखना ज़रूरी समझते हैं कि वह एक दिन इस विशाल संख्या की चकाचौंध में यह देखना न भूलें कि कोरोना से सुरक्षा के लिए दिसंबर तक रोज़ाना टीकाकरण की जो रफ़्तार होनी चाहिए, वह अगर न हुई तो वे संकट में होंगे। एक दिन ढाई करोड़ और रोज़ाना 50 लाख से काम नहीं चलेगा। यह भी बताना पड़ेगा और यह नकारात्मक लगेगा कि एक दिन की इस बड़ी संख्या का मतलब बाक़ी के दिनों के लिए घटी संख्या ही होगा। ऐसा करके सरकार जनता की आँखों में धुल झोंक रही है। जाहिर है, यह भी नकारात्मक ही माना जाएगा।