आज जो चीन के सम्पूर्ण बहिष्कार का नारा दे रहे हैं, वे कल तक अफ़सोस कर रहे थे कि चीन ने विकास की जो ऊँचाइयाँ हासिल कर ली हैं, हम उनके क़रीब भी क्यों नहीं पहुँच पाए हैं। कल तक ही क्यों वे आज भी चीन न बन पाने के दुःख से भरे हुए हैं। भारत सरकार की आलोचना करनेवाले हमवतन लोगों को ही वे धमकी देते हैं कि काश कि यह देश चीन होता तो फिर इन आलोचकों को आटे-दाल का भाव मालूम हो जाता। इन लोगों में चीन न हो पाने की कलक पिछले कुछ वर्षों में व्यक्त होती रही है।