बात-बात पर चीनी सामानों का बहिष्कार क्या फैशन है? आख़िर जिस चीन को लाल आँख दिखाने की बात होती है और चीन में बने सामान का बहिष्कार किया जाता है, वहीं से आयात क्यों बढ़ गया?
लद्दाख में भारत और चीनी सैनिकों के बीच दो साल पहले गलवान संघर्ष के बाद जोर-शोर से चीनी सामानों के बहिष्कार नारा बुलंद किया जा रहा था। तो क्या चीन से आयात बंद हुआ? क्या चीन की अर्थव्यवस्था इससे तबाह हो गई?
ऐसा कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने कड़ा एतराज़ जताया और पीएमओ के हस्तक्षेप के बाद टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम के लिए ली-निंग से किए गए क़रार को रद्द कर दिया गया है।
आज जो चीन के सम्पूर्ण बहिष्कार का नारा दे रहे हैं, वे कल तक अफ़सोस कर रहे थे कि चीन ने विकास की जो ऊँचाइयाँ हासिल कर ली हैं, हम उनके क़रीब भी क्यों नहीं पहुँच पाए हैं।
चीनी उत्पादों के बायकॉट की अपील के बीच यह ख़बर आई है कि भारतीय सेना जिस बुलेट प्रूफ़ जैकेट का इस्तेमाल करती है, उसमें चीन से आयातित सामान लगे होते हैं।
क्या चीनी कंपनियाँ भारत से अपना निवेश निकाल कर दक्षिण पूर्व एशिया के दूसरे देशों में लगा सकती हैं? क्या वे भारत के बाज़ार का विकल्प तलाशने का काम शुरू कर सकती हैं?