चीनी सामानों का बॉयकॉट?
बीजेपी का आईटी सेल और उसकी साइबर सेना सक्रिय हो गई, देखते ही देखते सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट्स की भरमार हो गई जो चीनी उत्पादों के बहिष्कार की अपील करते हों। देखते ही देखते ट्विटर पर #BoycottChina और #BoycottChineseProducts जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे, इनसे लाखों लोग जुड़ गए।क्या चीनी उत्पादों का बॉयकॉट अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत किया जा सकता है? क्या चीनी उत्पादों का बायकॉट करना भारतीयों के लिए मुमकिन है? क्या ख़ुद भारतीय अर्थव्यवस्था इससे बदहाल नहीं होगी?
किसे कितना नुक़सान?
पिछले साल यानी 2019 में भारत ने चीन से 75 अरब डॉलर मूल्य का सामान आयात किया लेकिन यह चीनी निर्यात का सिर्फ 3 प्रतिशत है। दूसरी ओर, उसी दौरान भारत ने चीन को 17 अरब डॉलर मूल्य के सामान का निर्यात किया और यह भारतीय निर्यात का 5.3 प्रतिशत है।यानी दोनों देशों ने एक दूसरे का सामान लेना बंद कर दिया तो जितना नुक़सान चीन को होगा, भारत को उसका लगभग दूना नुक़सान होगा।
चीन पर निर्भर भारतीय उद्योग
भारत चीन से खिलौने, बिजली की लैंप, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद, कंप्यूटर के पार्ट्स, मोटर गाड़ी और मोटर साइकिल के कल पुर्जे, उर्वरक, एंटीबायोटिक्स, दवाएं, व मोबाइल फ़ोन खरीदता है।दवा उद्योग
दवा बनाने के लिए एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडियंट्स (एपीआई) की ज़रूरत पड़ती है। इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि क्रोसिन दवा की एपीआई पैरासेटामॉल है।
बीते दिनों नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने दवा उद्योग के कुछ प्रमुख लोगों की एक बैठक बुलाई। इस बैठक का फोकस यह था कि आत्मनिर्भर बनने के लिए भारतीय दवा उद्योग की चीन पर निर्भरता ख़त्म की जाए।
केंद्र सरकार की संस्था सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारतीय दवा उद्योग को चीन पर निर्भरता ख़त्म करने के लिए कम से कम 38 एपीआई ख़ुद बनाने होंगे या किसी और से लेना होगा।
70% बल्क ड्रग्स चीन से
भारत के एंटीबायोटिक्स उत्पाद चीन पर आधारित हैं। पेनसिलिन, एम्पीसिलिन, अमॉक्सीसिलिन, टेट्रासाइक्लिन, विटामिन और हार्मोन ड्रग्स चीन से ही आते हैं। इसका कोई विकल्प नहीं है। भारत ये चीजें यूरोपीय देशों से नहीं ले सकता, वह आर्थिक रूप से मुमकिन नहीं है। ख़ुद यूरोपीय दवा निर्माता ये चीजें चीन से लेते हैं।रसायन उद्योग
भारत का 163 अरब डॉलर का रसायन उद्योग लॉकडाउन की वजह से चीन से इंटरमीडिएट प्रोडक्ट्स न आने से त्राहि त्राहि कर रहा है। रसायन उद्योग की शीर्ष संस्था केमेक्सिल के पूर्व अध्यक्ष सतीश वाग ने कहा है कि इंटरमीडिएट प्रोडक्टस के लिए चीन पर निर्भरता ख़त्म नहीं की जा सकती है।लॉकडाउन के दौरान पूरा उद्योग ठप हो गया। रसायन उद्योग का 2025 तक 304 अरब डॉलर के कारोबार का लक्ष्य था, जो अब नामुमकिन है। सवाल यह है कि जब सिर्फ लॉकडाउन से यह हुआ तो चीन से एकदम सामान न लें, यह कैसे मुमकिन है?
ऑटो उद्योग
भारत की ऑटो कंपनियाँ लगभग 30 प्रतिशत कल-पुर्जे चीन से खरीदती हैं। ब्रेकिंग सिस्टम, स्टीयरिंग सिस्टम, इल्यूमिनेशन सिस्टम और इंजिन चीन से आयात किए जाते हैं। वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान चीन से 4.50 अरब डॉलर के कल-पुर्जे खरीदे गए। चीन पर यह निर्भरता और बढ़ जाएगी क्योंकि भारत बीएस 4 से बीएस 6 एमिशन सिस्टम अपनाने जा रहा है। सवाल उठता है कि भारतीय ऑटो कंपनियाँ कहां से ये कल-पुर्जे खरीदें?मोबाइल फ़ोन उद्योग
भारत का मोबाइल फ़ोन उद्योग पूरी तरह चीन पर निर्भर रहता है। चीन से ये सारे कल-पुर्जे अलग-अलग कर आयात किये जाते हैं। ऐसे सेट लगभग 75 प्रतिशत होते हैं। शेष 25 प्रतिशत सेट एसकेडी यानी सेमी नॉकडाउन कंडीशन में होते हैं। भारत में सिर्फ उसकी असेम्बलिंग होती है, यानी उन कल-पुर्जों को जोड़ कर सेट तैयार कर दिया जाता है।लॉकडाउन से बदहाल मोबाइल फ़ोन उद्योग
चीन से निर्भरता तो ख़त्म किया ही नहीं जा सकता। एक अध्ययन में पाया गया था कि सिर्फ लॉकडाउन की वजह से चीन से आयात न होने की स्थिति में ऐपल और फ़ॉक्सकॉन जैसी बड़ी कंपनियों से लेकर छोटे-मोटे काम करने वाली कंपनियों पर बुरा असर पड़ेगा। इससे नौकरियाँ जाएंगी, आयात- निर्यात कम होंगे और सरकार को कर के रूप में पहले से कम पैसे मिलेंगे।शियोमी, वोवो, ओप्पो, वन प्लस, लीनोवो, ऐपल, रीयलमी के उपकरणों की आपूर्ति कम होगी। टीसीएल और लीनोवो जैसी बड़ी कंपनियों के उत्पाद भी कम होंगे। यह तो सिर्फ लॉकडाउन के असर की बात हो रही है। चीन का बॉयकॉट करने पर क्या असर होगा, यह अनुमान लगया जा सकता है।
दूरसंचार उद्योग
भारत का दूरसंचार यानी टेलीकॉम उद्योग पूरी तरह चीनी उपकरणों और कल पुर्जो पर निर्भर है। हम सिर्फ दो कंपनियों पर ध्यान देते हैं। चीनी कंपनी ह्वाबे और ज़ेडटीई ने 1998-99 में भारत में अपना कारोबार शुरू किया। साल 2005-2006 आते आते ये दोनों कंपनियाँ भारतीय टेलीकॉम उद्योग की रीढ़ की हड्डी बन गईं।बीएसएनल, एमटीएनएल और आईटीआई के ज़्यादातर उपकरण इन दो कंपनियों से ही आते हैं। टेलीकॉम सेवा देने वाली कंपनियों में आइडिया सेल्युलर, एअरसेल, रिलायंस कम्युनिकेशन्स, टाटा टेलीसर्विसेज पूरी तरह ह्वाबे और जेडटीई पर निर्भर हैं।
चीन नहीं, दूसरे से खरीदेंगे!
एक सवाल उठता है कि हम ये उत्पाद दूसरे देश से ले सकते हैं। लेकिन इसके साथ मुश्किल यह है कि चीन के बाहर ये उत्पाद मुख्य रूप से यूरोपीय बाज़ार में मिलते हैं, मसलन, जर्मनी से ऑटो पार्ट्स। लेकिन ये बहुत ही महंगे होते हैं। इन देशों से कुछ सामान खरीदने से उसकी लागत बहुत अधिक हो जाएगी और विश्व बाज़ार में भारत उसे नहीं बेच पाएगा। घरेलू बाज़ार में उनकी कीमत बढ़ने से मंहगाई बढ़ेगी और लोगों की जेब पर बोझ बढ़ेगा।अंतरराष्ट्रीय नियम क्या हैं?
इसके बाद सवाल यह उठता है कि क्या भारत चीनी उत्पादों पर नियंत्रण लगा सकता है? इसका उत्तर है नहीं, वह ऐसा नहीं कर सकता है।विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार युद्ध की स्थिति और कूटनयिक संबंध नहीं होने पर भी किसी देश के आयात को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
भारतीय निर्यात?
सिर्फ अतिरिक्त आयात कर ही ऐसी चीज है जो भारत किसी बहाने लाद सकता है। लेकिन ऐसा होने पर चीन भारतीय उत्पादों पर भी ऐसा ही कर लाद सकता है।इससे क्या भारतीय अर्थव्यवस्था चौपट नहीं हो जाएगी? क्या इससे चीन से ज़्यादा नुक़सान भारत को नहीं होगा? क्या इससे लाखों लोग बेरोज़गार नहीं हो जाएंगे, क्या इससे अरबों डॉलर का नुक़सान नहीं होगा?
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