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ट्रंप ट्रेड वॉरः यूरोपियन यूनियन का 25% जवाबी टैक्स का प्रस्ताव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई व्यापार नीति और भारी-भरकम शुल्कों की घोषणा ने ग्लोबल अर्थव्यवस्था में हलचल मचा दी है। यूरोपीय संघ (ईयू) ने सोमवार को अमेरिकी स्टील और एल्यूमीनियम पर ट्रंप द्वारा लगाए गए शुल्कों के जवाब में अमेरिकी सामानों पर 25% जवाबी शुल्क लगाने का प्रस्ताव पेश किया है। यह कदम ट्रंप की "रेसीप्रोकल टैरिफ" नीति के तहत उठाया गया है। अमेरिका ने 2 अप्रैल से सभी देशों से आयात पर 10% आधार टैरिफ और कई देशों पर इससे भी अधिक दरें लागू की हैं।

ईयू की ओर से यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है, जब ग्लोबल शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखी जा रही है। सोमवार को अमेरिकी शेयर बाजार में भारी उथल-पुथल देखी गई, जिसमें डॉउ जोन्स 1,200 अंकों से अधिक गिर गया और नैस्डैक 4% नीचे बंद हुआ। पिछले सप्ताह ट्रंप की शुल्क घोषणा के बाद से अमेरिकी शेयरों से लगभग 6 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति साफ हो चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट 2020 के बाद सबसे खराब साप्ताहिक प्रदर्शन को बताती है।

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यूरोपीय आयोग ने अपने प्रस्ताव में कहा कि अमेरिकी शुल्कों का जवाब देना अनिवार्य हो गया है। इससे पहले ईयू ने 1 अप्रैल को स्टील पर मौजूदा सुरक्षा उपायों को सख्त करते हुए आयात को 15% तक कम करने का फैसला किया था। यूरोपीय संघ के व्यापार प्रमुख मारोस सेफकोविक ने कहा, "ये जवाबी टैरिफ पिछले 26 अरब यूरो के प्रस्तावित शुल्कों की तुलना में कम प्रभाव डालेंगे, लेकिन यह अमेरिका को हमारी गंभीरता का संदेश देगा।" ईयू सदस्य देशों के बीच इस प्रस्ताव पर 9 अप्रैल को मतदान होने की संभावना है।

ट्रंप ने अपनी नीति का बचाव करते हुए कहा कि यह अमेरिका को दशकों से "शोषण" करने वाले देशों के खिलाफ जरूरी कदम है। रविवार को एयर फोर्स वन पर पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने टैरिफ को "दवा" करार दिया और कहा कि वह यूरोप और चीन जैसे क्षेत्रों के साथ व्यापार घाटे को कम करने के लिए बातचीत को तैयार हैं। ट्रंप ने यह भी धमकी दी कि यदि चीन ने 8 अप्रैल तक अपने जवाबी शुल्क वापस नहीं लिए, तो वह 9 अप्रैल से चीन से आयात पर 50% अतिरिक्त शुल्क लागू करेंगे।

ट्रंप की नीति का असर सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं है। जापान का निक्केई सूचकांक सोमवार को लगभग 8% गिर गया, जबकि यूरोपीय शेयरों में 6% की गिरावट दर्ज की गई। चीन ने भी जवाबी कार्रवाई की घोषणा की है, जिसमें 10 अप्रैल से अमेरिकी सामानों पर 34% शुल्क लगाने की योजना है। भारत सहित कई देशों ने अभी तक जवाबी शुल्क लगाने से परहेज किया है और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को प्राथमिकता दी है।

अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि ट्रंप की शुल्क नीति ग्लोबल मंदी को बढ़ा सकती है। उनका कहना है कि इससे न केवल आयात महंगा होगा, बल्कि अमेरिकी उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति भी प्रभावित होगी। दूसरी ओर, ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों का दावा है कि 50 से अधिक देशों ने व्यापार वार्ता के लिए व्हाइट हाउस से संपर्क किया है, जिसे वे अपनी रणनीति की सफलता मानते हैं।

फिलहाल, वैश्विक नेता और निवेशक इस बात पर नजर रखे हुए हैं कि ट्रंप की यह "दवा" अर्थव्यवस्था को ठीक करेगी या और गहरे संकट में डालेगी। आने वाले दिन इस ट्रेड वॉर के भविष्य को तय करने में अहम होंगे।

विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की इस व्यापार नीति का असर लंबे समय तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पर देखने को मिल सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चेतावनी दी है कि यदि यह व्यापार युद्ध और तेज होता है, तो 2026 तक ग्लोबल जीडीपी में 2% तक की कमी आ सकती है। इसके अलावा, छोटे और मध्यम आकार के व्यवसाय, जो पहले से ही कोरोना महामारी के बाद की आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं, इस बढ़ते शुल्क के कारण और दबाव में आ सकते हैं। विशेष रूप से, यूरोप और एशिया के निर्यात-निर्भर देशों को भारी नुकसान होने की आशंका है, क्योंकि अमेरिका उनके लिए एक प्रमुख बाजार है।

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भारत ने अभी तक इस व्यापार युद्ध में सतर्क रुख अपनाया है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि उसे जल्द ही अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारत अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर जोर दे रहा है ताकि शुल्कों के प्रभाव को कम किया जा सके। साथ ही, भारत अपने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए "मेक इन इंडिया" जैसी पहलों को और तेज करने की योजना बना रहा है। हालांकि, ग्लोबल सप्लाई चेन में व्यवधान और कच्चे माल की बढ़ती कीमतों के कारण भारत को भी इस संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। आने वाले महीने इस बात का फैसला करेंगे कि क्या यह व्यापार युद्ध एक नई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की शुरुआत करेगा या इसे कूटनीति के जरिए सुलझा लिया जाएगा।

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क़मर वहीद नक़वी
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