बेंगलुरू में हुई हिंसा से क्या कोई प्रसन्न हो सकता है? क्या कोई उसका समर्थन कर सकता है? लेकिन ऐसा मानने वाले लोग इस समाज में हैं जो यह मानते हैं कि इस हिंसा की हिमायत करने वाले लोग सभ्य समाज में मौजूद हैं। हिंसा के दौरान ही जब बहुत सारे लोग हैरान थे और उसे समझने की कोशिश कर रहे थे, एक ख़ास तबके में एक विकृत प्रसन्नता देखी गई। ‘अब बोलो क्या कहते हो?’, ‘ये कौन लोग सड़क पर हैं और लूटपाट और आगज़नी कर रहे हैं?’, क्या तुममें इनका विरोध करने की हिम्मत है?’, इस तरह के चुनौती भरे सवाल पत्थर की तरह उछाले जाने लगे।