बेंगलुरू में हुई हिंसा से क्या कोई प्रसन्न हो सकता है? क्या कोई उसका समर्थन कर सकता है? लेकिन ऐसा मानने वाले लोग इस समाज में हैं जो यह मानते हैं कि इस हिंसा की हिमायत करने वाले लोग सभ्य समाज में मौजूद हैं। हिंसा के दौरान ही जब बहुत सारे लोग हैरान थे और उसे समझने की कोशिश कर रहे थे, एक ख़ास तबके में एक विकृत प्रसन्नता देखी गई। ‘अब बोलो क्या कहते हो?’, ‘ये कौन लोग सड़क पर हैं और लूटपाट और आगज़नी कर रहे हैं?’, क्या तुममें इनका विरोध करने की हिम्मत है?’, इस तरह के चुनौती भरे सवाल पत्थर की तरह उछाले जाने लगे।
बेंगलुरू हिंसा: दूसरे के धर्म पर टिप्पणी क्यों; हिंसा पूरी तरह ग़लत
- वक़्त-बेवक़्त
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- 17 Aug, 2020

जो अपने धर्म के लोगों को अपने धर्म के किसी पक्ष पर आलोचना का अधिकार नहीं देता, वह दूसरे धर्म पर टिप्पणी करना चाहता है, इससे उसके मन में छिपे ज़हर का ही पता चलता है। क्या आप किसी को चिढ़ाना चाहते हैं, उसे बेइज्जत करना चाहते हैं? यह भी एक क़िस्म की हिंसा है।
ऐसे सवालों का निशाना ख़ासकर वे लोग हैं जिन्हें उदार, धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है या जिन्हें गाली देने के लिए इन शब्दों के अंग्रेज़ी प्रतिरूपों को बिगाड़कर इन लोगों को अपमानित करने की कोशिश की जाती है। यह विचारणीय है कि भारतीय संस्कृति के इन अलंबरदारों को क्यों अंग्रेज़ी की ग्रंथि जकड़े हुए है!