बरसों पहले का किस्सा है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हमारे वरिष्ठ सहकर्मी, इतिहासकार शाहिद अमीन से एक मुलाक़ात का। अपने बेटे के स्कूल से लौटे थे। भरे बैठे थे। मुझ हिंदीवाले को देखा तो फट पड़े। बेटे के हिंदी अध्यापक ने उसके किसी निबंध में आए उर्दू शब्द पर लाल कलम लगाकर उसकी जगह समानार्थी शुद्ध ‘हिंदी’ शब्द लिख दिया था।
प्रेमचंद 140 : 17 वीं कड़ी : अदब की ज़बान और मज़हब
- साहित्य
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- 20 Aug, 2020

आज से सौ साल पहले जब हिंदी का निर्माण हो ही रहा था, प्रेमचंद न सिर्फ उर्दू के अस्तित्व को बनाए रखने के हक़ में थे, बल्कि हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनों में ही मौजूद तंगनज़र लोगों से लड़ रहे थे जो हिन्दी और उर्दू के सवाल को धर्मों के आधार पर देखने की वकालत कर रहे थे।