बरसों पहले का किस्सा है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हमारे वरिष्ठ सहकर्मी, इतिहासकार शाहिद अमीन से एक मुलाक़ात का। अपने बेटे के स्कूल से लौटे थे। भरे बैठे थे। मुझ हिंदीवाले को देखा तो फट पड़े। बेटे के हिंदी अध्यापक ने उसके किसी निबंध में आए उर्दू शब्द पर लाल कलम लगाकर उसकी जगह समानार्थी शुद्ध ‘हिंदी’ शब्द लिख दिया था।