प्रेमचंद उर्दू और के अन्य कथाकारों या लेखकों से इस रूप में अलग थे और उनसे बड़े भी कि हमेशा ही अपने समय के प्रति अपनी जिम्मेवारी का बोध उन्हें था। यह बात अटपटी सी लगती है और लगता है कि यह तो हर लेखक में होता है लेकिन ऐसा है नहीं।
प्रेमचंद 140 : 18 वीं कड़ी: समय के प्रति जिम्मेवारी का बोध
- साहित्य
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- 23 Aug, 2020

लेखक, ख़ासकर कथाकार की सार्थकता तब है जब लोग उससे गपशप करना चाहें, जब उन्हें उसकी संगत में बैठने का जी करे। वह किसी को सुधार दे, बदल दे, उसकी यह महत्वाकांक्षा नहीं।