प्रेमचंद उर्दू और के अन्य कथाकारों या लेखकों से इस रूप में अलग थे और उनसे बड़े भी कि हमेशा ही अपने समय के प्रति अपनी जिम्मेवारी का बोध उन्हें था। यह बात अटपटी सी लगती है और लगता है कि यह तो हर लेखक में होता है लेकिन ऐसा है नहीं।