2006 में राज्यसभा में प्रेमचंद और हिंदी साहित्य मात्र को लेकर एक तूफ़ान खड़ा हो गया। यह संभवतः पहला मौक़ा था जब साहित्य को सांसदों ने चर्चा के योग्य माना था। तब कांग्रेस के नेतृत्ववाली सरकार थी। नई स्कूली पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम की घोषणा हुए साल भर ही हुआ था। नए पाठ्यक्रम के अनुसार नई स्कूली किताबें भी बनाई जा रही थीं। हिंदी की पाठ्यपुस्तकें बदली गई थीं।
प्रेमचंद 140 : 19वीं कड़ी : प्रेमचंद : भूख और जूठन
- साहित्य
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- 23 Aug, 2020

प्रेमचंद समाज की संरचना को समझते हैं, जानते हैं कि व्यक्ति खुद संरचना का शिकार होता है और उसके मनोभाव सिर्फ उसके गढ़े हुए नहीं होते हैं। उनके लिए सिर्फ वही ज़िम्मेदार नहीं है। अगर ढाँचे को न बदला जाए तो आदमी या व्यक्ति के बदलने की मश्क बेकार हो सकती है।
तब विपक्षी दल के नेताओं ने, जिनकी अगुआई सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी कर रहे थे, इन नई किताबों में संकलित कई रचनाओं पर ऐतराज किया।
वह बहस बहुत दिलचस्प है। इसलिए भी कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में तक़रीबन सारे राजनीतिक दल इन रचनाओं और इनके रचनाकारों के ख़िलाफ़ एकजुट हो गए। सामाजिक न्यायवादी और वामपंथी भी पीछे न रहे।