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शासक दल भारत को बुरी तरह तोड़ कर ही उस पर क़ब्ज़ा करना चाहता है?

हमें यह समझना ही पड़ेगा कि बीजेपी की विभाजनकारी राजनीति रोजाना घृणा और हिंसा प्रचार की संजीवनी पर जीवित रहती है। आप इसे बूँद-बूँद ज़हर का इंजेक्शन देना भी कह सकते हैं। इस घृणा, हिंसा और दुराव को व्यापक करना होता है ताकि यह स्वाभाविक लगने लगे। इसीलिए सीमा विवाद को हिंसा तक ले जाना और उसके बाद लगातार  सार्वजनिक तौर पर उसके बहाने और हिंसा का प्रसार करना एक मुख्यमंत्री को ज़रूरी  जान पड़ा। 
अपूर्वानंद

ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था! 

एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य की पुलिस पर हमला करे और पुलिस कर्मियों कि हत्या कर दे? एक राज्य दूसरे में जाने से 'अपने' लोगों को मना करे? दो मुख्यमंत्री खुलेआम एक दूसरे पर इल्जाम लगाएं? दो राज्यों की पुलिस एक दूसरे के अधिकारियों को हाज़िर होने का हुक़्म दें? एक दूसरे पर आपराधिक मुक़दमा दर्ज करें? 

ऐसा कभी नहीं हुआ था, लेकिन क्या ऐसा होने पर अब हमें कोई आश्चर्य होना चाहिए? असम और मिज़ोरम के बीच जो खूनी संघर्ष हुआ, और उसके बाद जो हो रहा है, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है । 

मिज़ोरम पुलिस ने असम के मुख्यमंत्री हिमन्त बिस्व सर्मा पर हत्या के प्रयास, आपराधिक षड्यन्त्र और अन्य जुर्मों का आरोप  लगाते हुए मामला दर्ज किया है। उनके साथ असम के 4 वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर भी इन्हीं आरोपों में मामला दर्ज किया गया है। 

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आश्चर्य क्यों?

उधर असम की पुलिस दिल्ली में मिज़ोरम के सांसद को  गिरफ़्तार करने उनके आवास पर पहुँच गई और उनको न पाकर उसने उनके मकान पर नोटिस चिपका दी। 

असम में कछार और सिलचर के अभिभावक मंत्री अशोक सिंघल ने सिलचर जाकर वहाँ के लोगों को कहा कि मिज़ोरम को मालूम होना चाहिए कि गोली का जवाब गोली से दिया जाएगा।

मिज़ोरम जाने के रास्ते राष्ट्रीय मार्ग 306 को जाम कर दिया गया है और ट्रक और दूसरी गाड़ियाँ अटकी पड़ी हैं। रेल की पटरियाँ उखाड़ डाली गई हैं, जिससे मिज़ोरम  आना जाना न हो सके और वहाँ ज़िंदगी के लिए जरूरी चीजें न पहुँच सकें। 

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नाकेबंदी

मंत्री अशोक सिंघल इस नाकेबंदी का समर्थन कर रहे थे। वे मिज़ोरम के 'आक्रमण' के ख़िलाफ़ असम, विशेषकर सिलचर की जनता को भरोसा दिलाने वहाँ पहुँचे थे। 

पिछले कुछ वर्षों में मिज़ोरम की नाकेबंदी एकाधिक बार की गई है और यह असम की तरफ से मिज़ोरम की सबसे ताज़ा नाकाबंदी है। 

मिज़ोरम को देश के बाकी हिस्से से जोड़नेवाला यह एकमात्र रास्ता है। इसके बंद होने का मतलब है मिज़ोरम के जीवन का अस्त-व्यस्त हो जाना।

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हिमंत बिस्व सर्मा, मुख्यमंत्री, असम

बढ़ता तनाव!

असम ने अपने राज्य के लोगों को मिज़ोरम जाने से सावधान किया है और कहा है कि इसका  निर्णय वे अच्छी तरह सोच समझकर ही लें।

असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि मिज़ो लोगों के पास हथियार हैं और वहाँ  की सरकार जब तक उनके हथियार नहीं ले लेती, असम के लोगों पर उनकी तरफ से ख़तरा बना हुआ है। 

 असम की पुलिस मिज़ोरम से आनेवाले लोगों और गाड़ियों पर नज़र रखेगी और यही मिजोरम की सरकार भी कर रही है। 

यह अभूतपूर्व है। एक राज्य दूसरे राज्य में जाने से सावधान करते हुए निर्देश जारी करे, यह तो कभी नहीं हुआ। 

इस नाकेबंदी और इस निर्देश पर क्यों देश में और विशेषकर राष्ट्रवादियों में कोई क्षोभ नहीं है? ये वही लोग हैं जो शरजील इमाम को आतंकवादी ठहरा रहे थे क्योंकि उन्होंने भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक नागरिकता के क़ानून का विरोध करने के लिए सड़क जाम और नाकेबंदी का प्रस्ताव दिया था।

असमिया राष्ट्रवाद?

सिर्फ यह कहने के जुर्म में शरजील डेढ़ साल से जेल में हैं और उनपर यूएपीए जैसे भयानक क़ानून की धाराएँ लगा दी गई हैं। लेकिन अभी असम का शासक दल जो कर रहा है, वह असम के लोगों की स्वाभाविक राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया का समर्थन मात्र माना जा रहा है। 

इस सबकी पृष्ठभूमि अभी कुछ रोज़ पहले सिलचर के करीब असम और मिज़ोरम की सीमा पर हुआ रक्तपात है। असम के मुख्यमंत्री का आरोप है कि मिज़ोरम की पुलिस और मिज़ो लोगों ने असम की पुलिस पर और असमिया लोगों पर हथियारबंद हमला किया। 

इसमें असम के 6 पुलिसकर्मी मारे गए। वीडियो पर मिज़ो पुलिस खुशी मनाते हुए दिखलाई पड़ रही है। 

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ज़ोरमथंगा, मुख्यमंत्री, मिज़ोरम

ट्विटर युद्ध!

मिज़ोरम के मुख्यमंत्री का आरोप है कि असम की तरफ से राज्य की सीमा का अतिक्रमण किया गया और मिज़ोरम की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की गई।

दूसरी तरफ असम के मुख्यमंत्री का आरोप है कि यह ज़मीन असम की है और मिज़ोरम इसपर कब्जा करने की साजिश कर रहा है। 

यह आरोप- प्रत्यारोप दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री खुलेआम ट्विटर पर कर रहे थे। यह भूलकर कि दोनों ही एक ही राजनीतिक दल, भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों की सरकारों के नेता हैं?

सीमा विवाद

असम के मुख्यमंत्री ने अपनी सीमा की रक्षा के लिए 4,000 कमांडो तैनात करने का वादा किया है। इस बीच असम, नागालैंड और असम मेघालय के बीच भी सीमा-विवाद की ख़बर मिली है। 

सीमा विवाद राज्यों के बीच नए नहीं हैं। इससे यही मालूम होता है कि इतनी आसानी से राष्ट्र निर्माण नहीं हो जाता और अनेक प्रकार के तनाव (जिनके ऐतहासिक कारण हैं, और तात्कालिक भी)  बने रहते हैं। वे तनाव कालक्रम में शिथिल होते हैं। रिश्ते इतनी आसानी से नहीं बनते।

इस विवाद में 'मुख्य भारत' के राष्ट्रवादियों ने अपनी भाषा को संयमित रखा है और जैसे यह तय किया है कि वे न तो असम के मुख्यमंत्री को राष्ट्र विरोधी कहेंगे क्योंकि उन्होंने भारत के ही एक राज्य की नाकाबंदी कर दी है और अपने लोगों को वहाँ जाने से रोका है और न मिज़ोरम के मुख्यमंत्री को राष्ट्र विरोधी कहेंगे हालाँकि उनकी पुलिस ने भारत के ही एक राज्य के पुलिसवालों को मार गिराया है। 

बात-बात पर लोगों के माथे पर राष्ट्र विरोधी का बिल्ला चिपका देने वाले इस वक़्त इतने संयमित क्यों हैं?

सृजित तनाव?

इस संयम की प्रशंसा की जानी चाहिए। कहा जाना चाहिए कि यही संयम हर अवसर पर श्रेयस्कर होगा। लेकिन असम के स्थानीय राष्ट्रवादी नेता इससे सहमत नहीं हैं। 

इसी बीच मेघालय के एक सांसद ने भारत सरकार को लिखा है कि असम में नए मुख्यमंत्री के आने के बाद असम और पड़ोसी राज्यों के बीच सीमा विवाद काफी आक्रामक हो गए हैं। 

असमिया राष्ट्रवाद के नाम पर असम में मिज़ोरम, नागालैंड और दूसरे राज्यों के ख़िलाफ़ घृणा का प्रसार किया जा रहा है। मेघालय के एक मंत्री ने कहा है कि मेघालय भी उनको मुँहतोड़ जवाब दे जो उसकी सीमा का अतिक्रमण करें। 

सीमा विवाद के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन अभी जो हो रहा है, वह नया और चिंताजनक है। असम के मुख्यमंत्री ने तय कर लिया है कि वे राज्य में किसी न किसी प्रकार तनाव का निर्माण करेंगे और जो तनाव पहले से हैं, उन्हें बढ़ाएंगे।

नफ़रत की राजनीति

मुसलमानों के ख़िलाफ़ तो वे खुलकर घृणा प्रचार कर रहे हैं। इस बात को सबने नोट किया कि अभी जो असमिया पुलिसकर्मी मारे गए उनमें जो मुसलमान थे, उनके नाम संक्षिप्त रूप में मुख्यमंत्री ने लिए जिससे यह पता न चले कि वे मुसलमान हैं जबकि बाकी पुलिसकर्मियों के पूरे नाम लिए। यह एक चतुर लेकिन शैतानी दिमाग ही कर सकता है।

इस तरह समाज को बाँटने का सुनियोजित अभियान कोई मुख्यमंत्री पहली बार कर रहा हो, ऐसा नहीं। यह हम गुजरात में देख चुके हैं। फिर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और सबसे ताज़ा असम में। 

हमें यह समझना ही पड़ेगा कि बीजेपी की विभाजनकारी राजनीति रोजाना घृणा और हिंसा प्रचार की संजीवनी पर जीवित रहती है।आप इसे बूँद-बूँद ज़हर का इंजेक्शन देना भी कह सकते हैं।

बढ़ता दुराव

इस घृणा, हिंसा और दुराव को व्यापक करना होता है ताकि यह स्वाभाविक लगने लगे। इसीलिए सीमा विवाद को हिंसा तक ले जाना और उसके बाद लगातार  सार्वजनिक तौर पर उसके बहाने और हिंसा का प्रसार करना एक मुख्यमंत्री को ज़रूरी  जान पड़ा। 

आम तौर पर इस तरह के विवाद के छिड़ने पर मुख्यमंत्री एक दूसरे से फ़ोन पर या मिलकर बात कर लेते। आखिर वे कोई शत्रु देश तो नहीं हैं।  इस प्रसंग में इस तरह के बयान लगातार दिए गए जैसे एक राज्य दूसरे का शत्रु है। और यह तब जब उत्तर पूर्व के सारे राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं। 

लेकिन बीजेपी ने उत्तर पूर्व को एक करने के नाम पर जो औपचारिक मंच (उत्तर पूर्व विकास संघ) बनाया है, उसमें असम को शेष राज्यों का मुखिया मान लिया गया है।  इसे वे क्यों स्वीकार करें? आखिर मिज़ोरम, मेघालय, नागालैंड अलग राज्य हैं ही क्यों? क्या सिर्फ आकार में छोटे होने के कारण वे असम का नेतृत्व कबूल कर लें?

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सीमा विवाद नए नहीं हैं। खून ख़राबा पहले भी हुआ है। लेकिन यह पहली बार है कि राज्य सरकारें हिंसा के बाद एक दूसरे के ख़िलाफ़ अपनी जनता को उत्तेजित कर रही हैं। 

यह जान बूझकर किया गया और किया जा रहा है जिससे असम की  जनता में 'राष्ट्रवादी' उत्तेजना और घृणा को गहरा किया जा सके। इसका अपना उपयोग है। 

 दूसरों से दुराव और घृणा का भाव कभी भी नया दूसरा बनाकर उसके ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए उस भाव को जीवित रखना आवश्यक होता है। 

अगर हम पिछले सात वर्षों पर गौर करें तो उत्तर भारत में कश्मीर, केरल, बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु के ख़िलाफ़ प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष तरीकों से घृणा का प्रचार किया जाता रहा है।

कोरोना महामारी के दूसरे दौर में केरल और महाराष्ट्र पर आरोप लगाने की कोशिश हुई कि उनके कारण वायरस का संक्रमण बढ़ा है। केंद्र सरकार ने खुलेआम विपक्षी दलों की राज्य सरकारों के खिलाफ दुष्प्रचार किया। 

इन सात वर्षों में देश अनेक प्रकार से छिन्न-भिन्न हो गया है, बल्कि कर दिया गया है। इसी को चलती हुई ज़बान में टुकड़े-टुकड़े करना कहते हैं। 

यह कौन कर रहा है? वही राजनीतिक दल जो अभी भारत पर शासन कर रहा है। वह भारत पर कब्जा तो करना चाहता है, लेकिन उसे बुरी तरह तोड़कर ही वह यह कर सकता है।

समाज के टुकड़े, प्रदेशों के टुकड़े, एक दूसरे को लेकर संदेह, एक दूसरे से भय और इस तरह एक दूसरे पर हिंसा की तैयारी।  'घुसकर मारूँगा' जब राष्ट्रीय मुहावरा बन जाए तो वह जुबानी नहीं रह जाता, आचरण में तब्दील हो जाता है। अभी जो असम और मिजोरम के बीच हो रहा है, उसे इसी संदर्भ में समझने की ज़रूरत है।   

  

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