आसमान गंभीर हो उठा है। मेघाच्छादित आकाश जैसे थम-थम कर रहा हो अपने अंदर कुछ गहरी बात छिपाए हुए। और उमस बढ़ती जा रही है। देह जैसे खुद से आजिज़ आ गई हो। सब कुछ स्थिर है। सामने बेल का वृक्ष। और उसकी बिलकुल शिखर की फुनगियों तक चढ़ आई उसकी टहनियों से लिपटी हुई मालती की बेल। उसके उजले-गुलाबी रंगत लिए हुए फूलों के बुंदे। एक-एक पत्ता, पत्ती जैसे किसी की प्रतीक्षा में दम साधे हुए। हवा भी जैसे सगुन कर रही हो।