'हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी?': हिंदी पढ़ने, जानने वालों के लिए यह प्रश्न कितना जाना हुआ है! निहायत ही गद्यात्मक और सपाट लेकिन मैथिलीशरण गुप्त के इन शब्दों की हैसियत क्लासिक की-सी है। प्रत्येक पीढ़ी, प्रत्येक समाज, राष्ट्र यह प्रश्न अपने आप से करता रहता है। इससे उसके जीवित होने का प्रमाण मिलता है। यह प्रश्न कौन कर रहा है, यह कम महत्वपूर्ण नहीं।
अतीत का चुनाव वर्तमान के प्रति हमारे नज़रिए से ही तय होगा
- वक़्त-बेवक़्त
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- 16 Aug, 2021

मेरा अतीत आपके अतीत का अगर हमेशा प्रतिद्वंद्वी होगा तो आज हम एक समाज कैसे बन पाएँगे? लेकिन यह भी सच है कि कई बार हमें साहसपूर्वक अतीत का सामना करना चाहिए और यह भी कबूल करना चाहिए कि समान में विभाजन रहे हैं और अतीत भी विभाजित होंगे ही।
प्रश्न करने वाले के व्यक्तित्व की सतह से भी तय होता है कि वह इनके उत्तर कैसे खोजेगा। 'हम कौन थे' का उत्तर खोजना क्या इतना आसान है? हम गौरवशाली अतीत के स्वामी हैं, अगर यह इस प्रश्न का उत्तर है तो निश्चय ही हमारे अंदर कोई हीन भाव है।
अतीत के प्रति एक आलोचनात्मक रुख रखते हुए उससे वर्तमान और भविष्य के लिए रौशनी हासिल करना ही एक जीवित समाज का रवैया हो सकता है।