'हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी?': हिंदी पढ़ने, जानने वालों के लिए यह प्रश्न कितना जाना हुआ है! निहायत ही गद्यात्मक और सपाट लेकिन मैथिलीशरण गुप्त के इन शब्दों की हैसियत क्लासिक की-सी है। प्रत्येक पीढ़ी, प्रत्येक समाज, राष्ट्र यह प्रश्न अपने आप से करता रहता है। इससे उसके जीवित होने का प्रमाण मिलता है। यह प्रश्न कौन कर रहा है, यह कम महत्वपूर्ण नहीं।