हिंदी की कुछेक विडंबनाओं में एक ये भी है कि जिनका साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में एक जमाने में बड़ा योगदान रहा, उनको या तो विस्मृत कर दिया जाता है या उनको विस्मृति की ओर अग्रसारित कर दिया जाता है। `स्मृति’ की भी अपनी एक राजनीति होती है। वीरेंद्र नारायण (जन्म 14 नवंबर 1924) के साथ भी कुछ कुछ ऐसा ही हुआ। आज जब उनकी जन्मसदी मनाई जा रही हो तो कई सुधी लोग भी ये पूछते हैं कि वे कौन थे या उन्होंने क्या किया?
वीरेंद्र नारायण: एक रंगकर्मी की जन्मशती
- विविध
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- 29 Mar, 2025

वीरेंद्र नारायण का आधुनिक हिंदी और भारतीय रंगमंच के क्षेत्र में उनका एक बड़ा योगदान था। जानिए, उनकी जन्मशती पर रवींद्र त्रिपाठी उनको कैसे याद करते हैं।
पर इस विस्मृति के बाद भी ये तथ्य नहीं बदलता कि आधुनिक हिंदी और भारतीय रंगमंच के क्षेत्र में उनका एक बड़ा योगदान था। उन्होंने नाटक लिखे, अभिनय किया, हिंदी और अंग्रेजी में नाटकों की व्यावहारिक और सैद्धांतिक समीक्षा लिखी, हिंदी जगत को पश्चिमी रंगमंच के कुछ पहलुओं से परिचित कराया, उपन्यास लिखे, प्रकाश और ध्वनि के कई कार्यक्रमों के निर्देशन किए, सितार वादन किया, संगीतकारों पर लेख लिखे। वे आज़ादी की लड़ाई के दौरान जेल भी गए, समाजवादी विचारधारा से प्रेरित रहे, पत्रकारिता की और रेडियो जैसे माध्यमों में भी उनकी सक्रियता रही।