आधुनिक भारत में संस्थाओं के इतिहास को देखें तो एक बड़ी समस्या उनके लंबे समय तक प्रासंगिक और रचनात्मक बने रहने की रही है। आकस्मिक नहीं कि सरकारी से लेकर ऐसी कई गैर-सरकारी संस्थाएं  रही हैं जो अपने वक़्त में बहुत रचनात्मक रहीं पर आगे चलकर अपनी चमक खोती गईं। जो संस्थाएं स्वायत्त की धारणा के तहत बनीं उनकी स्वायत्तता छीजती गईं। कई कारण रहे पर फिलहाल यहां उसके विश्लेषण का वक्त नहीं है। अभी तो इतना समझने की बात है कि इस दौरान कुछ ऐसी संस्थाएं भी रहीं जो हाल के वर्षों में कुछ कारणों से हताहत अवश्य हुईं, या जिनकी स्वायत्तता कुचलने के प्रयास भी हुए  फिर भी काफी हद तक वे अपनी प्रासंगिकता और उपयोगिता बनाए रख सकीं। इनमें एक है राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (रानावि) और उसका रंगमंडल।