1. वाल्मीकि रामायण की रामकथा बुद्ध और महावीर से बहुत पुरानी है। क्योंकि राम का पहला उल्लेख ऋग्वेद के दशम मंडल के 93वें (विश्वेदेवाः) सूक्त के 14वें मंत्र में एक शूरवीर राजकुमार के रूप में हुआ है। इतिहासकार ऋग्वेद का काल निर्विवाद रूप से 1500 ई पूर्व के आसपास मानते आए हैं:
प्र तद्दु॒:शीमे॒ पृथ॑वाने वे॒ने प्र रा॒मे वो॑च॒मसु॑रे म॒घव॑त्सु।
ये यु॒क्त्वाय॒ पञ्च॑ श॒तास्म॒यु प॒था वि॒श्राव्ये॑षाम्॥ १०.९३.१४
2. तमिल संगम साहित्य के दो काव्यों में रामकथा के प्रकरणों का उल्लेख हुआ है। पुराणनुरु या पुरपत्तु में राजा से मिले आभूषणों के उपहार को पहनने वाले कवि की तुलना उन बंदरों से की गई है जो रावण द्वारा हर कर ले जाई जा रही सीता के ज़मीन पर गिरे आभूषणों को पहन कर ख़ुश होते हैं। इसके रचयिता उन्पोडिपसुन्कुंडियार का समय ईसा पूर्व पहली शताब्दी माना जाता है।
दूसरा उल्लेख अकनानुरु की 70वीं कविता में हुआ है जहाँ विजयी राम धनुष्कोटि में एक बरगद की छाँव में बैठे कुछ रहस्य की बातें कर रहे हैं।
3. ईसा के जन्म के आसपास हुए संस्कृत नाटककार भास के तीन नाटकों के कथानक रामकथा पर आधारित हैं और यह दशरथ जातक की नहीं वाल्मीकि की रामकथा है।
4. बौद्ध नाटककार अश्वघोष ने अपने बुद्धचरितम् महाकाव्य में रामकथा का कोई उल्लेख नहीं किया है जिससे स्पष्ट होता है कि तब तक उन तीन जातकों की कथाएँ प्रचलित नहीं हुई थीं जिन्हें रामकथा के आधार पर गढ़ा गया है। अश्वघोष ईस्वी सन 80 में पैदा हुए थे।
5. कालिदास के रघुवंशम् महाकाव्य की कहानी भी वाल्मीकि की रामकथा पर आधारित है।
6. बौद्ध जातक कथाएँ बुद्ध के उपदेश नहीं हैं बल्कि उनके जीवनों से जुड़ी पौराणिक कथाएँ हैं जिन्हें बुद्ध को दैवी अवतार के रूप में स्थापित करने के लिए वैदिक पुराणों और आख्यानों के आधार पर गढ़ा गया है। छोटी-बड़ी लगभग 500 जातक कथाएँ हैं जिनमें से कई महाभारत, पुराणों और पंचतंत्र की नकल पर बनाई गई हैं। तीन जातक ऐसे हैं जिन्हें रामकथा के आधार पर गढ़ा गया है। दशरथ, वेशांतर और जयद्दिशा जातक। तीनों की कहानी न वाल्मीकि की रामकथा से मिलती है और न आपस में एक दूसरी से। इसी से साफ़ है कि ये तीनों कथाएँ रामकथा की भौंडी नकल हैं।
8. दशरथ जातक की कथा पढ़कर साफ़ समझ में आता है कि जातक लिखने वाले ने जलन और नफ़रत से काम लेते हुए एक लोकप्रिय कथा का घटिया रूप बना दिया है और यही कारण है कि पूरे विश्व में वाल्मीकि की रामकथा लोकप्रिय हुई दशरथ जातक का घटिया रूप नहीं। क्योंकि मानवीय मूल्य और जीवन के जो आदर्श रामकथा में हैं दशरथ जातक में दूर-दूर तक नहीं हैं।
9. वेशान्तर जातक में एक राजकुमार को उसकी पत्नी समेत निर्वासन में भेज दिया जाता है। निर्वासन के दौरान एक दुष्ट ब्राह्मण राजकुमार से कहता है कि अपनी पत्नी मुझे सौंप दो, जिसके जवाब में पत्नी सीता के पतिव्रता धर्म की मिसाल देते हुए ब्राह्मण को फटकार देती है। इसी तरह जयद्दिशा जातक में राजकुमार की माँ अपने बेटे को आशीर्वाद देते हुए कहती है कि मेरा आशीर्वाद तुम्हें यक्ष के साथ होने वाले युद्ध में उसी तरह जीत दिलाएगा जैसे राम की माता के आशीर्वाद ने उन्हें दंडकारण्य में विजय दिलाई थी।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि जातक कथाओं में लिए गए रामकथा प्रसंगों में न केवल मानवीय मूल्यों का अभाव है वरन ऐसे अंतर्विरोध भी मौजूद हैं जो उन्हें हास्यास्पद बनाते हैं।
10. रामकथा की असली शक्ति रावण के सीताहरण और आदिवासी वानरों की सेना की सहायता से रावण पर राम की विजय में है। यही कहानी का असली ट्विस्ट है जो इसे कालजयी बनाता है। बौद्ध जातकों के लेखक अपनी नफ़रत और जलन में इसी को छोड़ कर ऊल-जलूल लिख गए हैं।
11. रामायण के अयोध्याकांड और उत्तरकांड में बाद में जोड़े गए एक दो क्षेपकों को छोड़ दें तो रामायण में न कहीं बुद्ध और महावीर का ज़िक्र है, न मगध का और न ही बुद्ध से जुड़े शहरों का। इससे सिद्ध होता है कि रामायण बुद्ध और महावीर से पहले लिखी गई है।
12. रामायण की कथावस्तु दो यात्राओं पर टिकी है। पहली यात्रा में विश्वामित्र राम को अयोध्या से आज़मगढ़, बलिया, बक्सर, वैशाली, दरभंगा और मधुबनी होते हुए सीतामढ़ी और जनकपुर ले जाते हैं। रास्ते में जितनी भी नदियों को वे पार करते हैं और जिन-जिन स्थानों पर वे जाते हैं वे और उनके नाम आज भी कुछ भाषाई परिवर्तनों को छोड़ कर ज्यों के त्यों हैं।
13. रामायण की दूसरी यात्रा राम के वनवास के लिए अयोध्या से दक्षिण की तरफ़ शुरू होती है जिसमें राम प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, सिंगरौली, प्रयाग, दंडकारण्य, नासिक, सुरेबन, हम्पी होते हुए रामनाथपुरम और रामेश्वरम् और श्रीलंका जाते हैं। ये सारे स्थान भी भौगोलिक दृष्टि से ज्यों के त्यों हैं और यही नहीं श्रीलंका में वे सब स्थान उसी रूप में मौजूद हैं जिनका वर्णन वाल्मीकि रामायण में है।
14. आज तक किसी मिथक के आधार पर इतने बड़े भूभाग का भूगोल और उसके नाम दुनिया में कहीं तय नहीं हुए। इससे सिद्ध होता है कि रामायण कोरा मिथक नहीं है और वाल्मीकि ने पूरे देश का बारीकी से भ्रमण और अध्ययन करने के बाद रामायण लिखी है।
15. रामायण के अकेले भारत में ही सौ से अधिक रूप मिलते हैं और भारत से बाहर तुर्कमेनिस्तान से लेकर फ़िलीपीन्स तक रामकथा किसी न किसी रूप में मौजूद है। थाइलैंड, मलेशिया, कंबोडिया और इंडोनेशिया की रामायण जातकों पर नहीं रामकथा पर ही आधारित है क्योंकि इन सब के मुख्य भाग राम-रावण युद्ध है जिसका जातकों में कोई उल्लेख नहीं है।
16. कुछ विद्वान तो यहाँ तक मानते हैं कि होमर के एलियड और ओडिसी महाकाव्यों पर भी रामकथा का असर दिखाई देता है और प्राचीन मिस्र के फ़िरून राजाओं के रेमसीज़ राजवंश और राम के रघुवंश में अद्भुत समानताएँ हैं। दोनों में सात-सात राजा हुए और राम को सर्वाधिक लोकप्रियता हासिल हुई।
17. जहाँ तक लिखित प्रमाण की बात है, तो भारत में लेखन की परंपरा बहुत बाद की है। लिखावट के पहले प्रमाण अशोक के शिलालेख हैं। वे भी इसलिए बनाए गए ताकि राजधर्म का पालन हो। अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद बौद्ध मठों के कहने में आकर उसे राजधर्म भी बना दिया था। उससे पहले भारत में धर्म को राजधर्म बनाने की परंपरा नहीं थी। राजा धार्मिक होता था। उसका न्याय भी धर्म पर आधारित होता था। पर वह उसे राजधर्म बना कर दूसरों पर थोपता नहीं था। इसीलिए अशोक के दादा चंद्रगुप्त को शिलालेख लिखवाने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। अशोक ने बौद्ध धर्म थोपने के लिए ऐसा किया जिसका बाद में विरोध हुआ और पुष्यमित्र शुंग ने उस परंपरा को तोड़ कर बौद्ध मठों को सत्ता से बेदखल किया।
18. बुद्ध के उपदेशों को भी उनके निर्वाण के बाद सदियों तक श्रुति परंपरा से ही सुरक्षित रखा गया क्योंकि लिखने के साधन और परंपरा नहीं थी। जबकि श्रुति परंपरा वैदिक काल से चली आ रही थी। बुद्ध के उपदेशों के लिखित प्रमाण ईसा पूर्व पहली शताब्दी से मिलने शुरू होते हैं। पर जहाँ तक जातकों की बात है उन्हें ईस्वी सन के बाद ही जोड़ा गया और उनकी पहली पांडुलिपियाँ पहली ईस्वी से दूसरी ईस्वी के बीच श्रीलंका में लिखी गईं।
बौद्धों ने भी वैदिक साहित्य की तरह अपने ग्रन्थों को आगमों की संज्ञा दी। चार आगम बने जिनमें बाद में पाँचवाँ आगम जोड़ा गया जिसमें जातक कथाएँ भी थीं। रामायण पर आधारित जातकों वाला क्षुद्रक निकाय बहुत बाद का लगता है। इसकी सबसे पुरानी पांडुलिपियाँ चीनी भाषा में मिलती हैं जिन्हें शायद फाह्यान और हुआन त्सांग साथ ले गए थे। लेकिन रामायण की जो पांडुलिपि सात साल पहले कोलकाता की साहित्य परिषद लाइब्रेरी में मिली है वह छठी शताब्दी की है और निश्चित रूप से उन पांडुलिपियों से भी पुरानी है जिनके आधार पर क्षुद्रक निकाय की प्रामाणिकता और ऐतिहासिकता सिद्ध की जाती है। कहने का सारांश यह है कि लिखित को ही प्रमाण मानने पर तो बौद्ध आगमों की भी प्रामाणिकता नहीं बचती क्योंकि शुरू की कई सदियों में उन्हें भी श्रुति परंपरा से ही सुरक्षित रखा गया था वेदों की तरह।
निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि रामायण को दशरथ जातक की नकल और पुष्यमित्र शुंग को रामायण का राम सिद्ध करने की कोशिशें गहरी हीनभावना और नफ़रती कुचेष्टा के सिवा कुछ नहीं हैं। जिन लोगों ने वाल्मीकि रामायण और जातक साहित्य के दर्शन तक नहीं किए वे दुष्प्रचार करने वालों के बहकावे में आकर अपने देश और समाज के एक अनूठे और कालजयी अवदान का तिरस्कार कर रहे हैं। यही कहानी पश्चिम या अरब जगत के किसी देश की होती तो आज पूरी दुनिया में उसका डंका बज रहा होता और वह देश उसी के बल-बूते पर फल-फूल रहा होता।
(शिवकांत के फ़ेसबुक पेज से)
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