हिंदी में अक्सर शिकायत की जाती है कि हमारे यहां जो बेहतर नाटक होते भी हैं उनकी ज्यादा प्रस्तुतियां नहीं हो पातीं। अच्छे अच्छे नाटक भी पंद्रह बीस प्रस्तुतियों के बाद बंद हो जाते हैं। लेकिन इस धारणा के अपवाद भी हैं और कुछ ऐसे नाटक भी हैं जो लंबे समय से खेले जा रहे हैं और कई साल पहले लिखे जाने के बावजूद उनकी प्रस्तुतियां लगातार हो रही हैं। इनमें एक है `ताज महल का टेंडर’। अजय शुक्ला का लिखा ये नाटक छब्बीस साल पहले राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (रानावि) में पहली बार खेला गया था। 1998 में। निर्देशक थे चित्तरंजन त्रिपाठी। चित्तरंजन तब राष्ट्रीय रानावि से स्नातक बने ही थे और उसके रंगमंडल के कलाकार थे। रंगमंडल के लिए उन्होंने इस नाटक का निर्देशन किया। संगीत भी चित्तरंजन का ही था। पहले शो से ही ये सुपरहिट साबित हुआ। फिर लगातार खेला जाता रहा। रंगमंडल में जब बाद में नए कलाकार आते गए तब भी इसका प्रदर्शन होता रहा। और रंगमंडल के बाहर दूसरे निर्देशकों ने भी इसे खेला और सबकी प्रस्तुतियां सफल ही रही हैं। यही कारण रहा कि इसके कई भाषाओं में अनुवाद हुए। भारतीय भाषाओं में भी और विदेशी भाषाओं में भी। ऐसी कोई सफलता पिछले कई बरसों से हिंदी के किसी और नाटक को नहीं मिली।
`ताज महल का टेंडर’ – एक लंबी औऱ सफल नाट्ययात्रा
- विविध
- |
- |
- 29 Mar, 2025

एक ऐसा नाटक है जो लंबे समय से खेला जा रहा है और कई साल पहले लिखे जाने के बावजूद उनकी प्रस्तुतियां लगातार हो रही हैं।
इस बार भी जब रंगमंडल अपने अस्तित्व की षष्ठिपूर्ति मना रहा है तो फिर से ये नाटक रानावि के अभिमंच में मंचित हुआ। और फिर से सुपरहिट हुआ। इस बार एक और खास बात थी। निर्देशक तो वही थे यानी चित्तरंजन त्रिपाठी जो इन दिनों रानावि के भी निदेशक हैं। लेकिन छब्बीसवें साल (वैसे रानावि की तरफ से इसे पच्चीसवां साल कहा गया क्योंकि परिपाटी यही है) के इस मौके पर इसके पांच प्रमुख अभिनेता वही थे जो पहली प्रस्तुति में थे- श्रीवर्धन त्रिवेदी, पराग शर्माह, बृजेश शर्मा, राजा शर्मा और कविता कुंद्रा। इनके अलावा चित्तरंजन त्रिपाठी ने भी इसमें शाहजहां का किरदार निभाया।