दूसरी कलाओं की तरह नाटक का एक काम ये भी है कि वो हमें इतिहास के उन गलियारों में ले जाए और उन लोगों या वाकयों की याद दिलाए जिन्होंने अपने वक्त में तहजीब, भाषा या मनोवृत्तियों को संवारा। ऐतिहासिक नाटकों को लेकर एक आम धारणा है कि उसमे राजाओं या रणबाकुंरों को जीवन की झांकिया मिलती है और साथ ही उस युग की जिसमें वे होते हैं। लेकिन ये धारणा अधूरी है। लेखकों, कलाकारों या संस्कृतिकर्मियों पर लिखे गए नाटक भी ऐतिहासिक के दायरे मे आने चाहिए। एक ऐसा ही नाटक इस हफ्ते श्री राम सेंटर में उर्दू अकादमी की तरफ से हुए नाटक समारोह में हुआ जिसका नाम `है हंगामा क्यूं है बरपा’। ये उर्दू के शायर अकबर इलाहाबादी की शायरी और जिंदगी पर आधारित था। निर्देशक हैं अहद खान। ये एजाज हुसैन का लिखा हुआ है हालांकि निर्देशक ने इसमें अपनी तरफ से कुछ जोड़ा भी है।
हंगामा है क्यूं बरपा थोड़ी सी जो पी ली हैः अकबर इलाहाबादी
- विविध
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- 29 Mar, 2025

अकबर इलाहाबादी हिन्दी के कवि थे या उर्दू के शायर थे। उनकी तमाम शायरी जनमानस में एक किंवदन्ती की तरह बोली-कही जाती है। ऐसा दर्जा कम ही शायरों या कवियों को मिलता है। अकबर इलाहाबादी की जिन्दगी पर इस हफ्ते श्रीराम सेंटर दिल्ली में खेला गया नाटक इस मायने में बेजोड़ है कि वो अकबर साहब की शायरी के बारे में बल्कि उनकी जिन्दगी के बारे में तमाम बातों की जानकारी देता है। रंगमंच पर अपनी कलम चलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र त्रिपाठी बता रहे हैं इस नाटक के बारे मेंः