दूसरी कलाओं की तरह नाटक का एक काम ये  भी है कि वो हमें इतिहास के उन गलियारों में ले जाए और उन लोगों या वाकयों की याद दिलाए जिन्होंने अपने वक्त में तहजीब, भाषा या मनोवृत्तियों को संवारा। ऐतिहासिक नाटकों को लेकर एक आम धारणा है कि उसमे राजाओं या रणबाकुंरों को जीवन की झांकिया मिलती है और  साथ ही उस युग की जिसमें वे होते हैं। लेकिन ये  धारणा अधूरी है। लेखकों, कलाकारों या संस्कृतिकर्मियों पर लिखे गए  नाटक भी ऐतिहासिक के दायरे मे आने चाहिए। एक ऐसा ही नाटक इस हफ्ते श्री राम सेंटर में उर्दू अकादमी की तरफ से हुए  नाटक समारोह में हुआ जिसका नाम `है हंगामा क्यूं है बरपा’। ये उर्दू के शायर अकबर इलाहाबादी की शायरी और जिंदगी पर आधारित था। निर्देशक हैं अहद खान। ये  एजाज हुसैन का लिखा हुआ है हालांकि निर्देशक ने इसमें अपनी तरफ से कुछ जोड़ा भी है।