भारत समेत पूरी दुनिया में इन दिनों लैंगिक मसलों पर कई तरह की बहसें हो रही हैं। अंग्रेजी में तो इसे लेकर एक नाम भी है- क्वीर सिद्धांत और राजनीति (queer theory and politics)। इसका कोई समतुल्य नाम हिंदी में अभी चलन में नहीं आया है क्योंकि अपने यहां ये सवाल उस तरह ताक़तवर ढंग से नहीं उठे हैं जिस तरह पश्चिम में। लेकिन अब, धीरे-धीरे ये मुद्दे उठ रहे हैं। राजेश तिवारी द्वारा लिखित और उनके निर्देशन में श्रीराम सेंटर में हुए नाटक `नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है’ में लैंगिक विमर्श के ऐसे कई मसले उभरते हैं।
लैंगिक राजनीति से जुड़े सवाल
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- 29 Mar, 2025

राजेश तिवारी द्वारा लिखित और उनके निर्देशन में श्रीराम सेंटर में हुए नाटक `नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है’ में लैंगिक विमर्श के ऐसे कई मसले उभरते हैं।
पर इस नाटक में क्या-क्या है, ये जानने के पहले समझ लिया जाए कि आखिर क्वीर राजनीति मोटामोटी क्या है? क्वीर सिंद्धांत लैंगिक मसले में पारंपरिक विभाजन को अस्वीकार करता है। वो ये नहीं मानता है कि पुरुषत्व या नारीत्व के बीच जैविक को छोड़कर कोई सांस्कृतिक कोई स्थायी विभाजक रेखा है। सरलीकृत रूप में कहें तो पुरुष भी तथाकथित रूप से नारी सुलभ व्यवहार कर सकता है और नारी पुरुषोचित। कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डीके पांडा इस कारण चर्चा में आए थे कि वे औरतों में प्रचलित कपड़े और गहने पहनते थे, लिपिस्टिक- सिंदूर लगाते थे और अपने आप को दूसरी राधा बताते थे। तब वे मीडिया में छाए हुए थे। क्वीर सिद्धांत के तहत इसकी भी व्याख्या हुई थी। पर क्वीर सिद्धांत यहीं तक नहीं है। समलैंगिकता भी इसी क्वीर सिद्धांत या राजनीति का हिस्सा है।