अगर सिर्फ हिंदी भाषी इलाके की बात करें तो नुक्क़ड़ नाटक नाम की विधा की पिछले चार- पांच दशकों से सक्रिय उपस्थिति रही। लगभग पैंतीस साल पर पहले जब सफदर हाशमी की दिल्ली से सटे साहिबाबाद इलाके में नुक्क्ड़ नाटक होने के दौरान हत्या हुई तो समाज के बड़े वर्ग में उसे लेकर तीव्र  प्रतिक्रिया हुई। ये स्वाभाविक भी था क्योंकि जिस `जन नाट्य मंच’ से सफदर हाशमी जुड़े थे उसने मज़दूरों के बीच राजनैतिक चेतना जगाने में एक भूमिका निभाई।