“मुझे नहीं पता जिस चीज की मैं मांग कर रहा हूँ, वह कठिन है या नहीं, और शायद इसके लिए मुझे मरना भी पड़ सकता है”, ये शब्द उस पिता के हैं जो स्विस संसद के सामने भूख हड़ताल पर बैठे थे। 3 बच्चों के 47 वर्षीय पिता गुलमेरो फर्नांडीज पेशे से कंप्यूटर प्रोग्रैमर हैं जिन्होंने 1 नवंबर को अपनी नौकरी छोड़कर भूख हड़ताल शुरू की है ताकि अपने देश की सरकार और पर्यावरण मंत्री सिमोनेटा सोमारुगा पर पर्यावरण संबंधी साहसिक निर्णय लेने के लिए दबाव बना सकें।
जग्गी वासुदेव जैसे गुरुओं को इतनी बात समझ क्यों नहीं आती?
- विविध
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- 21 Nov, 2021

भारत के एक ‘आध्यात्मिक गुरु’ जगदीश वासुदेव उर्फ जग्गी क्या पर्यावरण को बहुत गंभीरता से नहीं लेते? आख़िर वह किस वजह से पटाखे जलाने की वकालत कर रहे थे?
1 नवंबर, से ही ग्लासगो, यूनाइटेड किंगडम में ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज’ की 26वीं बैठक (COP26) शुरू हुई थी जहां दुनिया के तमाम नेता पृथ्वी के बढ़ते तापमान। (ग्लोबल वार्मिंग) को लेकर निर्णय लेने और रणनीतियाँ बनाने के लिए इकट्ठे हुए थे। लेकिन फर्नांडीज को शायद अपनी और दुनिया की सरकारों पर भरोसा नहीं इसलिए उन्होंने अपने जीवन को बलिदान करने के बारे में निर्णय ले लिया।
पर्यावरण के लिए जीवन को दांव पर लगाना, यह विचार मेरी नज़र में निश्चित रूप से क्रांतिकारी है लेकिन शायद भारत के एक ‘आध्यात्मिक गुरु’ जगदीश वासुदेव उर्फ जग्गी इन बातों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। एक तरफ़ जहाँ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सब कुछ ‘एक’ करने में लगे हुए हैं, 2070 तक भारत को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में ‘नेट ज़ीरो’ बनाने की घोषणा कर चुके हैं, पर्यावरण को बचाने के लिए वैदिक मंत्रों का भी सहारा ले रहे हैं, दुनिया की लगभग सभी समस्याओं का समाधान वेदों और भारतीय प्राचीन ग्रंथों में खोज रहे हैं, वहीं जगदीश वासुदेव उर्फ जग्गी को दीवाली पर पटाखे एक ज़रूरी आवश्यकता महसूस हुई।