पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में परंपरागत विरोधी रही कांग्रेस और वामपंथी दलों का हाथ मिलाना, पार्टी में असंतोष के कारण कुछ महीने पहले ही मुख्यमंत्री बदलना, सरकार में सहयोगी इंडीजीनस पीपुल्स प्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ रिश्तों में खटास, टिपरा मोथा जैसे क्षेत्रीय दलों का उभार और बीते करीब डेढ़ साल से राज्य में पांव जमाने की कवायद में जुटी तृणमूल कांग्रेस----अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा की राह में ऐसे तमाम स्पीड ब्रेकर हैं. शायद यही वजह है कि नाक की इस लड़ाई में अपने पैरों तले की जमीन बचाने के लिए राज्य में चुनावी एलान के साथ ही हिंसा भी शुरू हो गई है.