क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच कोई नई खिचड़ी पक रही है? हाल की कुछ घटनाएँ तो इसी ओर संकेत करती हैं। हाल में ममता ने विधानसभा में अपने प्रतिद्वंद्वी और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी से विधानसभा में अपने कक्ष में चाय पर मुलाक़ात की और उनको भाई कह कर बुलाया। उसके दो दिन बाद ही विधानसभा में राज्य में नदियों के तट कटाव की समस्या पर पेश प्रस्ताव का पहली बार बीजेपी ने समर्थन कर दिया। यही नहीं, इस मुद्दे पर केंद्र से पैसे मांगने के लिए जो सर्वदलीय दल मोदी से मिलने जाएगा उसमें बीजेपी के प्रतिनिधि भी शामिल रहेंगे। यह संयोग नहीं है कि यह सब तब हो रहा है जब 5 दिसंबर को दिल्ली में मोदी से ममता की बैठक तय है।
बीते कुछ दिनों की घटनाएँ बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच बदलते समीकरणों का संकेत दे रही हैं। हालाँकि तृणमूल के नेताओं ने इसे शिष्टाचार की राजनीति बताते हुए कहा है कि बंगाल के हितों के लिए मिलकर काम करना ज़रूरी है।
दरअसल, नए राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान दूसरी कतार में सीट मिलने से नाराज विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी उसमें शामिल नहीं हुए थे। परंपरा के मुताबिक़ विपक्ष के नेता को भी मुख्यमंत्री के साथ पहली कतार में ही बिठाया जाता है। उसके दो दिन बाद ही विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने विधानसभा में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कक्ष में जाकर उनसे मुलाक़ात की थी।
इस कथित शिष्टाचार मुलाक़ात के बाद राज्य की राजनीति अचानक गरमा गई है। राजनीतिक हलकों में कयास लगाया जाने लगा है कि ममता अब प्रदेश बीजेपी और उसके ज़रिए केंद्रीय नेतृत्व के साथ संबंध सुधारने में जुटी है। उस बैठक के दौरान ममता ने जहाँ शुभेंदु को भाई कह कर बुलाते हुए उनके साथ चाय पर राज्य के विभिन्न मुद्दों के बारे में चर्चा की, वहीं उनके पिता और तृणमूल कांग्रेस सांसद शिशिर अधिकारी का भी हालचाल जाना। दिसंबर, 2019 में शुभेंदु के बीजेपी में शामिल होने के बाद दोनों नेताओं की य़ह पहली मुलाक़ात थी।
लोगों को यह समझ में नहीं आया कि ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी के बीच अचानक इस बेवजह शिष्टाचार मुलाक़ात का क्या अर्थ है।
बैठक के दौरान शुभेंदु अधिकारी को ममता बनर्जी ने कहा कि वे विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों में शामिल हों। लेकिन शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि उन लोगों को सरकारी कार्यक्रम में न्योता नहीं दिया जाता है।
लेकिन उसके बाद विधानसभा में लगभग हर मुद्दे पर हंगामा करने वाली भाजपा के सुर अचानक बदल गए। विधानसभा में पहली बार ऐसा हुआ कि सरकार की ओर से पेश प्रस्ताव का विपक्षी दल भाजपा ने भी खुशी खुशी समर्थन कर दिया। यह प्रस्ताव राज्य में विभिन्न नदियों के तट कटाव की गंभीर समस्या से जुड़ा था। बीते शुक्रवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्पीकर विमान बनर्जी से अनुरोध किया था कि राज्य में नदी कटाव की समस्या को लेकर एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली भेजा जाए जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उसके स्थाई समाधान के लिए बात करेंगे। यह प्रस्ताव पेश होते ही भाजपा ने न सिर्फ इसका समर्थन किया, सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने की भी हामी भर दी। प्रस्तावित 12-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में विपक्ष के पांच सदस्य शामिल होंगे।
मुर्शिदाबाद, मालदा, नदिया में गंगा के कटाव की समस्या तो चरम पर है। इसके अलावे तटबंधों की मरम्मत भी बड़ी समस्या है। इसके चलते हावड़ा और हुगली जिले प्रभावित होते हैं।
हालाँकि तृणमूल के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत राय ने सफ़ाई दी है कि राजनीति में दोस्ती या दुश्मनी स्थायी नहीं होती। एक मुख्यमंत्री राज्य के हित में विपक्ष के नेता से मुलाक़ात कर ही सकता है। इसमें कोई बुराई नहीं है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक जहीरुल इस्लाम कहते हैं, ‘यह सही है कि राजनीति में दोस्ती या दुश्मनी कुछ भी स्थायी नहीं होती। लेकिन एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाले दो राजनीतिक दल अगर अचानक समान सुर में बोलने लगें तो सवाल उठना स्वाभाविक है। शायद विभिन्न मदों में केंद्र के पास लंबित हजारों करोड़ की रक़म पाने के लिए ही ममता बनर्जी अब भाजपा नेताओं को साधने में जुटी हैं। राज्य में अगले साल ही पंचायत चुनाव होने हैं।’
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