क्या पश्चिम बंगाल के नए राज्यपाल के तौर पर डॉ. सी.वी. आनंद बोस के कार्यभार संभालने से राजभवन और राज्य सचिवालय के बीच पैदा हुई खाई को कम करने में मदद मिलेगी? नए राज्यपाल के नाम के ऐलान के बाद से ही बंगाल के राजनीतिक हलकों में यही सवाल पूछा जा रहा है। इसकी वजह पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ का कार्यकाल है। क़रीब तीन साल इस पद पर उनके रहते शायद ही कोई ऐसा दिन बीता हो जब सरकार के साथ उनका टकराव नहीं हुआ हो। हालत यह हो गई थी कि तृणमूल कांग्रेस के तमाम नेता और सरकार के मंत्री धनखड़ को भाजपा का प्रवक्ता और राजभवन का भगवा पार्टी का कैंप ऑफिस तक कहने लगे थे। यही नहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो ट्विटर पर राज्यपाल को ब्लॉक तक कर दिया था।
राज्यपाल के शपथ ग्रहण के दौरान पहली कतार में बैठने का इंतज़ाम नहीं होने को अपमानजनक करार देते हुए विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी समारोह में शामिल नहीं हुए थे। हालाँकि बाद में उन्होंने राजभवन जाकर बोस से मुलाक़ात की थी। इसी मुद्दे पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार तो राजभवन पहुंचने के बावजूद समारोह में शामिल नहीं हुए। इससे नए राज्यपाल को आने वाले दिनों को अंदाजा ज़रूर मिल गया होगा।
वैसे, पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव का इतिहास काफी पुराना है। पहले भी यहाँ टकराव होते रहे हैं। लेकिन धनखड़ के तीन वर्षों के कार्यकाल के दौरान राजभवन और सचिवालय के बीच जिस तरह कड़वाहट बढ़ी, उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती। उनके उप-राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से मणिपुर के राज्यपाल ला. गणेशन बंगाल के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे थे। गणेशन न सिर्फ काली पूजा के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आवास पर गए, ममता भी उनके बड़े भाई के जन्मदिन के मौक़े पर आयोजित समारोह में शिरकत करने चेन्नई पहुंच गई। बंगाल में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के संबंधों में इतनी नजदीकी की भी कोई हालिया मिसाल नहीं मिलती।
पार्टी के प्रतिनिधिमंडल को न तो मुलाक़ात का समय मिल रहा था और न ही राज्यपाल उसके नेताओं से मुलाक़ात करते थे।
धनखड़ के कार्यकाल के दौरान यह रोजाना का दस्तूर बन गया था। गणेशन के रवैए से परेशान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने बोस की नियुक्ति से एक दिन पहले ही कहा था, ‘बंगाल को जल्दी ही ऐसा राज्यपाल मिलेगा जो धनखड़ के नक्शेकदम पर चलेगा।’
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