संविधान सभा ने बहुत सोच समझकर राज्यपाल को ‘नियुक्त’ करने की व्यवस्था पर ज़ोर दिया था न कि सीधे जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से। यह सब इसलिए किया गया ताकि राज्यों में जनता द्वारा चुने गये मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच कोई टकराव न हो। राज्यपाल को राज्य का कार्यकारी प्रमुख बनाया गया और व्यवहार में वो केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करने लगा। पश्चिम बंगाल और अन्य गैरभाजपाई शासित राज्यों में यही दिख रहा है। राज्यपाल केंद्र के एजेंट बन गए हैं। पत्रकार कुणाल पाठक की टिप्पणीः